शनिवार, 16 नवंबर 2013

= प. त./३७-४० =

*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पंचम - तरंग” ३७/४०)* 
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**शिष्य विट्ठल - को माला और हरी लौंग दी** 
सांभर में धर्म ध्वज, दीपत दादु पुज्य, 
सेवक विट्ठल द्विज, नित प्रति पास जू । 
एक समय शंका करि, माला हू की मन धरी, 
स्वामीजी के आयो पास, परचा की आश जू 
स्वामी तहाँ देत माल, विट्ठल को ततकाल, 
हरी लौंग पाऊं पुनि, मन में उल्लास जू । 
स्वामीजी अन्तर लखि, हरी लौंग आगे रखी, 
विट्ठल कहत धन्य स्वामी दादूदास जू ॥३७॥ 
धर्मध्वज श्री दादूदयाल जी साँभर में पूज्य प्रतिष्ठित हो गये थे । ब्राह्मण सेवक विट्ठल नित्य सेवा में उपस्थित होता था । एक दिन उसके मन ही मन इच्छा जागृत हुई कि - स्वामीजी अपने आप माला का प्रसाद दे दें तो कल्याण हो जाय । तब पास आने पर स्वामीजी ने तत्काल स्वयं ही उसे माला दे दी । फिर विट्ठल ने हरी - लौंग का प्रसाद पाने की कामना मन में ही की । अन्तर्यामी स्वामी जी ने हरी लौंग का प्रसाद देकर उसे पूर्णकाम किया । विट्ठल धन्य - धन्य कहता हुआ स्वामीजी के चरणों में गिर पड़ा । शिष्य बनकर जीवन सफल किया ॥३७॥ 
**इन्दव छन्द** 
शुष्क हि ताल भर्यो वर्षा करि,
सुन्दर आदिक शिष्य कहाये । 
दूसर संत समाज तिरै जल, 
सेवक संत सबै मन भाये । 
संत मुकुन्द मिले सिध दोय जु, 
मालहिं लौंग दिये, द्विज पाये । 
माधवदास कथा रस अमृत, 
दे परचा हरि के गुण गाये ॥३८॥ 
साँभर लीला प्रसंग में श्री दादूजी ने सूखे सरोवर को वर्षा का आह्नान करके भर दिया । सुन्दरदास जी आदि अनेक शिष्य बनाये । संत समाज को जल के ऊपर तिराया, साधु संत, सेवक भक्तों की कामनायें पूर्ण की । सिद्धसंत मुकुन्द भारती जी के साथ सत्संग ज्ञान चर्चा की । दो सिद्धों का गर्व दूर किया । सेवक द्विज को माला और लौंग का प्रसाद दिया । 
माधवदास कहते हैं कि - श्री दादूजी की चरित्रकथा में अमृत रस जैसा आनन्द आता है । वे भक्तों को परचा चमत्कार देते रहते और श्रीहरि का गुणगान करते रहते ॥३८॥ 
**सोरठा** 
साँभर शहर सु थान, यों लीला रस वर्ष करि । 
श्री दादू भगवान, गावत माधवदास जन ॥३९॥ 
इस तरह साँभर नगर में लीलायें करते हुये अब तक छ: वर्ष व्यतीत हो गये । माधवदास के साथ सभी भक्तजन उनके यश का गुणगान करते रहते ॥३९॥ 
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**द्रुमिला** 
परिचय लीला साँभरी, बरणी श्री गुरु दादु की । 
उपजै श्रद्धा सांकरी, मन में गुरु पद - पादुकी ॥४०॥ 
इस तरंग में गुरुवर श्री दादूजी की साँभर - नगर सम्बन्धी लीलाओं, का परिचय दिया है । जो जन श्रद्धा से पढेगा, सुनेगा, उसके मन में सद्गुरु दादूजी के प्रति सघन श्रद्धा उत्पन्न होवेगी, ब्रह्म चिंतन में लीन होवेगा ॥४०॥ 
इति माधोदास जी संतगुण सागरामृत सांभर लीला निरुपण 
॥ इति पन्चम तरंग सम्पूर्ण ॥५

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