शनिवार, 16 नवंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(३६/३८)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*जे हरि कोप करै इन ऊपर,* 
*तो काम कटक दल जांहि कहॉं ।*
*लालच लोभ क्रोध कत भाजैं,* 
*प्रगट रहे हरि जहॉं तहॉं ॥३७॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जो संतों पर दया करके स्वयं हरि ही काम आदि पर कोप करें, तो यह काम आदि भाग कर फिर कहॉं जावेंगे अर्थात् फिर वे मारे जावेंगे, क्योंकि परमेश्‍वर तो सर्वत्र ही व्यापक है । इसलिये काम आदि से बचने के लिये निरन्तर हरि की शरम ग्रहण करके रहो और नाम स्मरण करते रहो ॥३७॥
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*जीवित मृतक*
*तब साहिब को सिजदा किया,*
*जब सिर धर्‍या उतार ।*
*यों दादू जीवित्त मरै, हिर्स हवा को मार ॥३८॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जब साधक अपना अहंकार रूपी मस्तक उतार कर परमेश्‍वर में लीन करै, तो फिर साहिब की सिजदा कहिये, नवाज बन्दगी पूरी होती है । ब्रह्मऋषि सतगुरु देव कहते हैं कि हे साधक पुरुषों ! इस प्रकार जीवित ही मृतक तुल्य होकर, देखा - देखी की भावना को दमन करो ॥३८॥
(क्रमशः)

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