सोमवार, 9 दिसंबर 2013

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#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
पहली न्यारा मन करै, पीछै सहज शरीर । 
दादू हंस विचार सौं, न्यारा किया नीर ॥४॥ 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! सच्चे संत जब मन को संसार और देहअध्यास से उदास करके, फिर शरीर से निष्काम भाव से प्रारब्ध अनुसार स्वतः ही व्यवहार करते हैं और हर्ष, शोक, तृष्णा, राग - द्वेष, ये सब तमोगुण के कार्य - विकार उन संतों को नहीं व्यापते हैं । इस प्रकार वे संत सारग्राही दृष्टि से आत्म - स्वरूप को, संसारभाव से न्यारा, निर्विकार स्वरूप से निश्‍चय करते हैं ॥४॥ 
(श्री दादू वाणी ~ सारग्राही का अंग)
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साभार : Bhakti Samvaad - भक्ति संवाद - Devotional Discussion 
आज हम आपको अपने कल्याण की बात बताते हैं. ध्यान से सुनिए. ये सोचिये कि आप क्या चुनते हैं, किस चीज़ का आदर करते हैं- ‘बुराई’ का या ‘अच्छाई’ का. मेरा, सुमीत का, ऐसा मानना है कि यदि आप कपटी के कपट की ओर न देखते हुए, उसके कपट का आदर न करते हुए उसके साधू वेष का आदर करो तो भी आपका कल्याण होगा ही. ये बहुत सूक्ष्मता से समझने वाली बात है. देखो, ऐसा वो ही कर पायेगा जिसमें साधुओं और भगवान के प्रति अगाध प्रेम हो और ऐसे प्रेमी की जिम्मेवारी तो प्रभु पर ही होती है. अच्छाई को ग्रहण करने वाले हँस होते हैं तो हम उन्हीं की एक कथा सुनाते हैं. 
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एक राज्य का राजा था. वो कोढ़ी हो गया. बहुत उपचार किया पर वो ठीक नहीं हुआ. अंत में किसी ने कहा कि हँस के मांस से दवा बनेगी उससे लाभ होगा. राजा ने चार-पांच आदमियों से कहा कि जाकर मानसरोवर से हँस लेकर आओ वर्ना तुम्हें मार डालूँगा. अब वो बेचार चले. जब मानसरोवर पहुँचे तो देखा कि हँस उनसे बहुत दूर उड़ जाते थे. किसी से उन्हें पता चला कि हँस ऐसे किसी भी व्यक्ति के पास आने पर उड़ जाते हैं केवल वैष्णवों से नहीं डरते. 
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इन लोगों ने वैष्णवों का वेष बना लिया. हंसों ने इन्हें पहचान तो लिया पर वैष्णव वेष का ही आदर किया इनके कपट का नहीं. इस प्रकार उन्होंने अपने प्राणों को भी वैष्णव वेष पर वार दिया. इससे प्रभु द्रवित हो गए. नारायण ने वैद्य का रूप धरा और राजा का कोढ़ ठीक कर हंसों को छुडा लिया. साथ ही राजा को भक्ति एवं संत सेवा का उपदेश भी किया. जिन्होंने वैष्णवों का वेष धरा था उन्होंने भी जब इस वेष की महिमा जानी तो वो भी वैष्णव बन गए. 
आप भी हँस बनिये. भगवान, भक्तों और उनसे जुड़ी हर वस्तु का आदर कीजिये. आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा. पर अगर आप हर जगह ढोंग, पाखण्ड आदि का ही दर्शन करेंगे.. उसी का ‘गुणगान’ (मतलब सब बुरे हैं ये ही कहेंगे) करेंगे तो इससे आपका कोई कल्याण नहीं होगा. पर यदि आपमें श्रद्धा है, प्रेम है तो आप अपना भी कल्याण कर पाएंगे और ढोंगियों का भी. एक बात जानलो ‘असाधु’ के चंगुल में वो भी फंसा हुआ है जो सबमें उन्हीं का दर्शन करते हुए साधुओं का आदर नहीं करता. 
~ डॉ. सुमीत

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