रविवार, 8 दिसंबर 2013

= ष. त./२१-२२ =

*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षष्ठम - तरंग” २१/२२)* 
**गोपालदास जी को कथा की आज्ञा** 
दास गोपाल कथा तब थापत, 
बाँचत वाणि रु अर्थ अनेका ।
ज्ञान विचार भरयो गुरु ग्रन्थहिं, 
सो जन बाँचत धारि विवेका ।
ताँसुनि काज जुडे़ पुर सेवक, 
भीर सुथान हिं होत विशेषा ।
स्वामिजु पाद प्रमाण करें सब, 
सेवक लोग सुभक्ति सुनेका ॥२१॥ 
स्वामीजी की आज्ञा से साधु गोपालदास जी ने कथा प्रारम्भ की । गुरुवाणी के गूढ अर्थो को अनेक उदाहरणों द्वारा व्याख्यान करके समझाते । गुरु रचित ग्रन्थ में तो विविध शास्त्रों का सार, ब्रह्मज्ञान, वेदान्त विचार समाहित था । उसे विवेक पूर्व कथा में बाँचते । धीर, स्थिर मति वाले सुनकर उसे धारण करने लगे । धीरे - धीरे श्रद्धालु श्रोतोओं, नागरिक भक्तजनों की भीड़ एकत्र होने लगी । कथा के प्रारम्भ और अन्त में सभी भक्तिपूर्वक स्वामीजी के चरणों में प्रणाम करते । भक्ति का प्रचार - प्रसार होने लगा ॥२१॥ 
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**दादूराम का जप खूब होने लगा**
नाम जपें गुरु, और जपावत, 
सेवक साधु समाज उचारे ।
दास - प्रयाग जपावत नाम हिं, 
जो मन आवत साँझ सँवारे ।
दादूराम जपैं सबही मिलि, 
शब्द अखंड सु कीर्तन धारे ।
श्री गुरु पाद नमैं श्रद्धा युत, 
भक्त तिरैं भव तें हरि प्यारे ॥२२॥ 
स्वामीजी स्वयं तो निरन्तर राम नाम जपते ही रहते थे, औरों को भी नाम जप की प्रेरणा देते रहते । सेवक तथा साधु सभी मिलकर नाम संकीर्तन करने लगे । नाम जपाने का सत्कार्य प्रयागदास जी ने सँभाला । प्रात: सायं जो भक्तजन आते, उन्हें बैठाकर ‘दादूराम’ - शब्द का अखंड कीर्तन कराते । कीर्तन के बाद सभी स्वामीजी को श्रद्धापूर्वक नमन करते । इस तरह भवसागर से पार उतरने का यह सहज मार्ग संतो ने भक्तों को दिखाया ॥२२॥ 
(क्रमशः)

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