रविवार, 8 दिसंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(५९/६०)


॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*शूरातन* 
*दादू मरबो एक जु बार, अमर झुकेड़े मारिये ।* 
*तो तिरिये संसार, आतम कारज सारिये ॥५९॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! मरना ऐसा ही ठीक है, जिसमें निश्‍चय ही अमर होना अनिवार्य हो । शऱीर की मृत्यु तो अवश्यंभावी है ही । फिर क्यों न आत्म अनुसंधान में लग कर मृत्यु - भय से मुक्त हो जावें ? अर्थात् जो जिज्ञासु, परमेश्‍वर के संग होकर, अपने अहम्भाव को मारता है, उनका मरना एक दफा ही होता है । ऐसे निष्कामी संतजन आवागमन से मुक्त होते हैं ॥५९॥*
अति हुलसै छाड़ै नहीं, जम तो विस्वा बीस । 
दे साहिब की राह में, तन मन अपनों सीस ॥ 
*दादू जे तूं प्यासा प्रेम का, तो जीवन की क्या आस ।* 
*शिर के साटे पाइये, तो भर भर पीवै दास ॥६०॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासु ! जो तूं राम के प्रेम का प्यासा है तो, शरीर अध्यास को छोड़कर, अतृप्त भाव से अखंड राम रस पीजिये ॥६०॥
(क्रमशः)

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