॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
.
*शूरातन का अंग २४*
.
*शूरातन*
*दादू मरबो एक जु बार, अमर झुकेड़े मारिये ।*
*तो तिरिये संसार, आतम कारज सारिये ॥५९॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! मरना ऐसा ही ठीक है, जिसमें निश्चय ही अमर होना अनिवार्य हो । शऱीर की मृत्यु तो अवश्यंभावी है ही । फिर क्यों न आत्म अनुसंधान में लग कर मृत्यु - भय से मुक्त हो जावें ? अर्थात् जो जिज्ञासु, परमेश्वर के संग होकर, अपने अहम्भाव को मारता है, उनका मरना एक दफा ही होता है । ऐसे निष्कामी संतजन आवागमन से मुक्त होते हैं ॥५९॥*
अति हुलसै छाड़ै नहीं, जम तो विस्वा बीस ।
दे साहिब की राह में, तन मन अपनों सीस ॥
.
*दादू जे तूं प्यासा प्रेम का, तो जीवन की क्या आस ।*
*शिर के साटे पाइये, तो भर भर पीवै दास ॥६०॥*
टीका ~ हे जिज्ञासु ! जो तूं राम के प्रेम का प्यासा है तो, शरीर अध्यास को छोड़कर, अतृप्त भाव से अखंड राम रस पीजिये ॥६०॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें