*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“सप्तम - तरंग” ३/५)*
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*पुष्कर और देवयानी स्नान करने रवाना*
लोग पचास हिं साठ जुड़े संग,
होत विदा उन संग लिये है ॥
वासर बीस लगे मग भीतर,
पुष्कर तीरथ ओर गये हैं ॥
पंच दिना लगि वास कियो उन,
ताँ द्विज - भोजन दान दिये हैं ॥
होत विदा पुनि साँभर के दिशि,
देव जु दानि नहान गये हैं ॥३॥
पुष्कर व साँभर तीर्थ की यात्रा के लिये पचास साठ सज्जनों की मण्डली ने अहमदाबाद से प्रस्थान किया । बीस दिन की पंथ यात्रा के बाद वे सब पुष्कर तीर्थ पर पहुंचे । वहाँ पाँच दिन तक निवास करते हुये विप्र - भोजन कराया, दान - पुण्य दिया । फिर साँभर तीर्थ की ओर प्रस्थान करके देवयानी पहुँचे ॥३॥
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*आनन्द रामजी और स्रृवा श्री दादू जी के पास - सांभर*
दोहा -
न्हाय सबै जन, दान दे, तब पुर कियो प्रवेश ।
देखि तपो धन सुयश तहँ, उपज्यो प्रेम विशेष ॥४॥
हर्षित विस्मित जन भये, निरखत दादूधाम ।
सब द्विज आनंदराम सह, जोरि पाणि परणाम ॥५॥
तीर्थस्नान व दान पुण्य करके सभी सज्जनों ने जब साँभर शहर में प्रवेश किया तो वहाँ यत्र तत्र श्री दादूजी की शोभा, यशोगाथा, तपोवार्ता, चमत्कार चर्चायें सुन - सुनकर विस्मित रह गये । उनके स्रदय में श्री दादूजी के प्रति प्रेम व दर्शन लालसा तीव्र हो उठी । आनन्द राम जी को अग्रणी लेकर वे श्री दादूजी के सत्संग आसन पर पहुँचे, और हाथ जोड़कर प्रणाम किया ॥४ - ५॥
(क्रमशः)
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