शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(६९/७०)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*दादू रहते पहते राम जन, तिन भी मॉंड्या झूझ ।*
*साचा मुँह मोड़ै नहीं, अर्थ इता ही बूझ ॥६९॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! संसार - भाव से मुक्त हुए और ‘पहते’ कहिए, परम पद को प्राप्त हुए परमेश्‍वर के भक्तों ने भी मन के गुण - विकार आदिक से युद्ध मांड्या है । और सर्व शास्त्रों का भी यही सार है कि सच्चे शूरवीर साधक, कभी मायिक संसार की ओर फिर मुख नहीं करते हैं अर्थात् प्रवृत्त नहीं होते हैं और सब प्रकार सावधान रहते हैं ॥६९॥
प्रसंग - 
स्वामीजी सांभर हुते, आये चार अतीत । 
वचन कहे कटु कलुष जिमि, तब कही साखी नीत ।
रामघटा, जंगी अरु, गैबी, छीतर जान । 
तीन गये पुनि एक शिष छीतर सरण सयान ॥
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*हरि भरोसा*
*दादू कॉंधे सबल के, निर्वाहेगा और ।*
*आसन अपने ले चल्या, दादू निश्‍चल ठौर ॥७०॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! हमारे तो सहारा, केवल एक समर्थ परमेश्‍वर का ही है । उन्हीं के कन्धों पर हमारे जीवन का भार है । वही हमको तो अन्त तक अपनी दया - दृष्टि से निभायेंगे, अर्थात् अपने निश्‍चल स्वरूप में हमको आप ही स्थिर करेंगे ॥७०॥
(क्रमशः)

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