मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

= ष. त./२५-२७ =

*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
.
*(“षष्ठम - तरंग” २५/२७)*
*सोरठा*
जेते शिष्य समाज, ले उपदेश हिं होत शुध ।
हरि सारे सब काज, स्वामी संगति ते प्रबुध ॥२५॥ 
श्री दादूजी का जो भी शिष्य बना, उपदेश लेकर शुद्ध हो गया । साधु - संगति से उसका अन्त:करण पवित्र हो गया, वह ब्रह्मज्ञान से प्रबुद्ध हो गया । श्री हरि ने उसके सब कार्य सिद्धकर दिये ॥२५॥ 
*इन्दव छन्द*~*तरंग सारांश*
वैश्य सुता तन पलटि किये नर, आय विरागि जु पार न पाये ।
टीला हजूरि गोपाल कथा थपि, दास प्रयाग जु नाम जपाये ।
विप्र दामोदर पाय प्रसाद जु, सन्तति लाभ लिये हरषाये ।
माधव दास विलास गुरु गुण, साँभर सेवक भक्ति दृढाये ॥२६॥ 
इस तरंग में वैश्य बाला पलट कर बालक बनना, वैरागी साधुओं द्वारा श्री दादूजी की साधना भक्ति का पार नहीं पाना, टीलाजी को गुरु - हजूरी का पद मिलना, गोपालदास जी द्वारा कथा स्थापना, प्रयागदास जी द्वारा नाम संकीर्तन करवाना, विप्र दामोदर को लवंग प्रसाद द्वारा पुत्र प्राप्ति होना, आदि स्वामीजी की लीलाओं का माधवदास ने वर्णन किया । साँभर शहर में श्री दादूजी के प्रति दृढ भक्ति स्थापित हो चुकी थी ॥२६॥ 
*दोहा*
सोलह सौ इकतीस अब, दादु दयालु सुसंत ।
करि लीला साँभर तपें, छायो सुयश अनन्त ॥२७॥ 
संत श्री दादू दयाल जी को साँभर धाम में विराजते हुये सम्वत् १६३१ का समय आ गया था । अपनी तपस्या, लीला तथा चमत्कारों से जन समाज में उन्होंने भक्ति जगा दी थी । उनका यश चारों दिशाओं में फैल गया था ॥२७॥ 
इति माधवदास विरचिते श्री सन्तगुण सागरामृत साँभर लीला वरणन ॥ इति षष्ठ तरंग सम्पूर्ण ॥६ 
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें