शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

= ष. त./१७-१८ =

*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षष्ठम - तरंग” १७/१८)* 
**संतों ने आमेर के लिये कहा**
को हिन्दवान चले तहँ जोर हि, 
अम्बपुरी विच देखुं दिवानो ।
आय तहां रु कहाय भले सिध, 
आवत ही तब देखत बानो ।
अम्बपुरी चलि आय रहौं गिरि, 
न्याय निवेर लहें सब तानो ।
जाय कहो सत्यराम महन्त जु, 
छाड़ि कलप्पन आनन्द मानो ॥१७॥
श्री दादूजी ने कहा - जहाँ हिन्दु - धर्मावलम्बियों का जोर है, वहाँ आमेर में जब आकर रहूंगा, तब उन दीवानों सिद्धों का जोर भी देखूंगा । तभी सब न्याय निर्णय हो पावेगा । अपने महन्तजी से मेरा ‘सत्यराम’ कहना और समझना कि - व्यर्थ की कल्पना योजना छोड़ो, और आनन्द में रहो ॥१७॥
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**तीनों साधु आमेर चले गये**
होत उदास चले तिहुं साधु जु, 
नांहि कही चलते कछु गाथा ।
रैन समै रहि भूधर के घर, 
प्रात हि वे गलते चलि जाता ।
वासर पाँच लगे मग भीतर, 
जाय कही गुरु को सब बाता ।
क्रिशन महंत लखी सब आपुन, 
संत बड़े हरि के रस राता ॥१८॥
तब उदास होकर तीनों बैरागी साधु चल पड़े । चलते समय कुछ भी नहीं कह पाये । रात को भूधर(क्षत्रिय)के घर ठहरे, फिर प्रात: होते ही गलता के लिये प्रस्थान किया । उन्हें यात्रा में(गलता से साँभर तथा साँभर से पुन: गलता लौटने) पाँच दिन व्यतीत हो गये थे । पाँच दिनों बाद अपने गुरुजी को जाकर सर्व वृतान्त - वार्ता बताई । महन्त कृष्णानन्द जी ने सारी बातें सुनकर समझ लिया कि - संत दादूजी दृढ़ संकल्प वाले, हरि रस के मतवाले महान् साधु है ॥१८॥
(क्रमशः)

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