शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

= शूरातन का अंग २४ =(५५/५६)

॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
*सबै कसौटी शिर सहै, सेवक सांई काज ।* 
*दादू जीवन क्यों तजै, भाजे हरि को लाज ॥५५॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! परमेश्‍वर के सच्चे शूररवीर सेवक, परमेश्‍वर की प्राप्ति के लिये, साधन कसौटी के सम्पूर्ण दुःखों को सहन करते हैं । परमेश्‍वर और परमेश्‍वर के नाम को अपना जीवन समझकर, फिर उसका त्याग नहीं करते हैं । क्योंकि वह जानते हैं कि त्यागने से हमारे स्वामी हरि को लाज आवेगी ॥५५॥ 
अर्थात् जैसे शूरवीर सब कसौटी सहता है, किन्तु रण से नहीं भागता है और सती चित्ता में जल जाती है, परन्तु अपने पतिव्रत धर्म और पति बिडद को नहीं लजाती है । इसी तरह भक्ति ही संतों की जीवनी, कहिये आधार है । ऐसे निष्काम पतिव्रत - धर्म धारण करने वाले संतजन, अपने स्वामी परमेश्‍वर की प्रसन्नता के लिये साधन काल की कसौटी सब सहन करते रहते हैं, परन्तु प्रभु - भजन से अलग नहीं होते । 
राम काम सारे सही लंका में हनुमान । 
सिय सुधि ले लंका दही, सत्रु सुजस बखान ॥
*सांई कारण सब तजै, जन का ऐसा भाव ।* 
*दादू राम न छाड़िये, भावै तन मन जाव ॥५६॥* 
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! परमेश्‍वर के भक्त परमेश्‍वर की प्राप्ति के लिये, स्थूल - सूक्ष्म, सम्पूर्ण वासनाओं का त्याग करते हैं । परन्तु राम के स्मरण का त्याग नहीं करते, चाहे उनका तन मन रहे या न रहे ॥५६॥
(क्रमशः)

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