सोमवार, 9 दिसंबर 2013

= ष. त./२३-२४ =

#daduji
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~ स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~ संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“षष्ठम - तरंग” २३/२४)* 
**माधव दासजी का शिष्य होना**
माधव दास जु साँभर आवत, 
तालहि में गुरु ध्यान करे हैं ॥ 
दास - प्रयाग चले जल ऊपर, 
अम्बुज पात ज्यु पाँव तिरे हैं ॥ 
जाय तहां शिष शीष्य निवावत, 
दादु दयालु हि पाद परे हैं ॥ 
वेद हि वर्ष यही विधि आवत, 
पाय अज्ञा पुर ध्यान धरे हैं ॥२३॥ 
मैं माधवदास जब साँभर आया, उस समय स्वामीजी झील मध्य अपने आसन पर ध्यान लगा रहे थे । मैंने देखा - प्रयागदास जी जल के ऊपर चल कर इस तरह जा रहे हैं, जैसे कमल का पत्ता जल पर तैरता रहता है, उन्होंने जल के ऊपर चलते हुये गुरुजी के समीप पहुँच कर शीष निवाकर प्रणाम किया और चरणों में लेट गये । चार वर्ष तक इसी विधि से प्रयागदास जी आते जाते रहे । वे पुर में रहकर ही ध्यान धरते थे ॥२३॥ 
**झांझूमाजू डाकू भेजा सांभर**
कोप कियो गलता महंत हु जा, 
मारण भेजहि मीणा हु भ्राता ।
चालत रात पड़े अंध कूप हिं, 
स्वामि सुमिरत नीकसि थाता ।
अंध भये चलि आवत साँभर, 
पद पडे, खुलि नेत्र विधाता ।
शिष्य भये गुरु ज्ञान लियो उर, 
झांझु रु बांझू नाम विख्याता ॥२४॥ 
गलता के महन्त जी को श्री दादूजी पर बहुत क्रोध आता रहता था । एक दिन उन्होंने दो मीणा भाइयों को, दादूजी को मारने के लिये भेजा । वे दोनों मीणा भाई रास्ते में चलते हुये अन्धे हो गये, और रात को एक कूप में जा गिरे । वहाँ पड़े - पड़े ही उन्होंने श्री दादूजी को पुकारा, अपनी दूषित योजना के लिये क्षमा मांगी । सच्चे मन से की गई करुणा - पुकार सुनकर श्री दादूजी ने किसी पथिक के मन में प्रेरणा की । जिसके द्वारा वे दोनों बाहर निकल पाये । उस पथिक के सहारे दोनों अन्धे चलते हुये साँभर पहुँचे । जब उन्होंने श्री दादूजी के चरणों में गिर कर प्रणाम किया तो विधाता की प्रेरणा से उनकी आँखों में दर्शन शक्ति पुन: लौट आई । दोनों भाई स्वामीजी का ज्ञान - उपदेश लेकर शिष्य बन गये, और झाँझू, बाँझू नाम से प्रसिद्ध हुये ॥२४॥ 
(क्रमशः)

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