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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*लै का अंग ७/८*
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पहली था सो अब भया, अब सो आगे होइ ।
दादू तीनों ठौर की, बूझे विरला कोइ ॥८॥
प्रसंग कथा- किसी ने दादूजी से भूत, भविष्य, और वर्तमान जानने का प्रश्न किया था । उसी को उक्त ८ की साखी से उत्तर देकर समझाया था । इस पर दृष्टांत है सो भी देखिये -
कहा बादशाह बीरबल, चार चीज दिखलाय ।
इत उत दउघां हूँ नहीं, जन वेश्या कठ साह ॥२॥
एक दिन अकबर बादशाह ने बीरबल से कहा- मुझे ऐसी चार वस्तुयें दिखाओं - जो यहां नही वहाँ हो । यहॉं हो और वहाँ नही । यहॉं भी नही और वहाँ भी नहीं । यहॉं हो और वहाँ भी हो । बीरबल ने कहा - कल दिखलाऊँगा । दूसरे दिन बीरबल एक संत, एक वेश्या, एक कठयारा और एक धर्मात्मा सेठ को लेकर राज सभा में गया ।
अकबर बादशाह ने कहा - वे चारों दिखाओ । बीरबल ने संत की ओर संकेत करके कह - इनकी यहॉं तो कु़छ विशेषता नहीं है किन्तु ईश्वर के दरबार में इनका महान् आदर होगा । फिर वेश्या को दिखाकर कहा- इसकी यहॉं तो बहुत मान्यता है किन्तु ईश्वर के दरबार में कु़छ नहीं, उलटा दंड मिलेगा ।
फिर कठयारे को दिखाकर कहा - इसकी यहॉं भी कु़छ विशेषता नहीं और वहॉं भी कु़छ नहीं होगी । अन्त में धर्मात्मा सेठ को बताते हुये कहा - इनका यहॉं भी बहुत यश है और वहॉं भी बहुत सत्कार होगा । अकबर बादशाह ने कहा- तुम्हारा कथन यथार्थ है । यही उक्त ८ की साखी में कहा है - पहले किया वही यहॉं मिलता है और यहां करेगा वही आगे मिलेगा । तीनों स्थान में अपने कर्म का फल ही मिलता है ।
(क्रमशः)
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