शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

= ८८ =


#daduji
卐 सत्यराम सा 卐 
नाम अगाधता 
पढि पढि थाके पंडिता, किनहुँ न पाया पार। 
कथि कथि थाके मुनिजना, दादू नाम आधार ॥८७॥ 
हे जिज्ञासुओं ! शास्त्रों के मर्म को जानने वाले कितने ही पंडित विद्वान थक गए हैं। किसी ने भी शास्त्र आदि या शास्त्र-प्रतिपाद्य परमेश्वर का पार नहीं पाया है और मुनिजन भी शास्त्रों का मनन करते-करते थक गए हैं, परन्तु प्रभु की सत्ता कहिए, सामथ्र्य का किसी ने भी पार नहीं पाया है। अधिक क्या महिमा कहे ? जीव आत्मा का तो एक राम-नाम का स्मरण ही आधार है ॥८७॥ 
(चारों वेद और धर्मशास्त्रों के पठन मात्र से क्या लाभ, यदि ब्रह्मतत्व को नहीं जाना। जैसे चम्मच खीर आदि का स्वाद उनमें रहते हुए भी नहीं जानती।) 
दृष्टान्त ~ यमुना किनारे एक पंडित कथा बांचते थे। एक गूजरी यमुना के परले किनारे रहती थी। वह दूध लेकर रोज मथुरा में बेचने आती। एक रोज जहाँ कथा हो रही थी, वहाँ खड़ी हो गई और सुना कि राम-नाम संसार-समुद्र से पार कर देता है। गूजरी ने देखा, जब राम-नाम समुद्र से पार कर देता है, तो नदी तो बहुत छोटी है। इससे पार होने में तो कोई संशय नहीं है।
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तब तो गूजरी यह विचार करती-करती यमुना के किनारे-किनारे अपने गाँव के समीप जा पहुँची और राम-राम कहती जल के ऊपर पाँव रखती हुई परले किनारे पहुँच गई और बहुत राजी हुई। विचार किया कि उस पण्डित की कथा अगर मैं पहले सुन लेती, तो नौका वाले को इतने पैसे आने-जाने के क्यों देती ? खैर ! अब भी आगे को पैसे तो बच गए मेरे।
कल पण्डित जी को लाऊँगी और उनको खीर का भोजन कराऊँगी। दूसरे रोज दूध लेकर राम-राम कहती हुई जल के ऊपर होकर सीधी मथुरा में आ गई। पण्डित जी के पास जाकर बोली :- महाराज, मैं दूध देकर आती हूँ, आप कथा से निपट लो, फिर मेरे साथ चलना। आपको आज मैं खीर का भोजन कराऊँगी। पण्डित जी ने कहा :- ठीक है। दूध देकर वापिस आई। 
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पण्डित जी को साथ में लेकर गाँव की सीध में जमुना के किनारे-किनारे चल पड़ी। पण्डित जी बोले :- माता, इधर कहाँ चलती है, नौका का घाट तो पीछे रह गया। गूजरी बोली :- महाराज ! अपन को नौका-घाट से क्या मतलब है ? पण्डित जी ने जाना, इसके गाँव की सीध में थोड़ा पानी होगा। पण्डित जी तो यह विचार करते रहे और गूजरी राम नाम कहती जमुना पार हो गई और गुजरी ने पीछे फिर देखा कि पंडित जी तो दूसरे किनारे ही खड़े हैं। 
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गूजरी ने आवाज दी- "महाराज ! आ जावो। पण्डित जी बोले - आ गए। पण्डित जी ने धोती ऊँची चढ़ा ली और पानी में उतरे। गड़प से कमर तक पानी आ गया। पण्डित जी बाहर निकल आए। गूजरी बोली :- महाराज आ जाओ। पण्डित बोला :- गूजरी तू हमें मारने को लाई है या खीर खिलाने को ? यहाँ तो पानी बहुत गहरा है। 
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गूजरी बोली :- आप कहते थे, राम-नाम के स्मरण से समुद्र से पार हो जाते हैं। यह तो छोटी नदी है, इससे पार होने में क्या संदेह है ? पण्डित जी बोले :- वह तो कहने की बात थी। तो गुजरी ने कहा :- महाराज, खीर वही खाएगा, जो मेरी तरह पार आ जाएगा। आपको राम-नाम का निश्चय नहीं है। जिनको नाम का आधार है, वही संसार समुद्र से पार होते हैं। 
(श्री दादूवाणी ~ स्मरण का अंग)
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साभार : Gyan-Sarovar(ज्ञान-सरोवर)

अरबा ज्योँ का त्योँ, फिर कुनबा डूबा क्योँ ?
मूसलाधार बारिश की वजह से एक गाँव पानी मेँ डूबने लगा। इसलिए सभी लोग गाँव छोड़ किसी सुरक्षित जगह पर जाने लगे। उनमेँ एक गणितज्ञ बाबू भी थे जो अपने पूरे परिवार के साथ जा रहे थे। रास्ते मेँ एक नदी पड़ी। गणितज्ञ बाबू ने तुरंत अपना गणितीय दिमाग लगाया। अपनी लाठी से जगह-जगह पर नदी की गहराई मापी ।
फिर अरबा(औसत माध्य, Rule of three) की मदद से उन आँकड़ोँ का औसत निकाला । फिर अपने सभी कुटुम्बियोँ की ऊँचाई मापकर उसका औसत निकाला । दोनोँ औसत मूल्योँ की तुलना की तो पारिवारिक जनोँ की ऊँचाई का औसत ज़्यादा था । इसलिए बड़ी शान से बोले-'चिँता की बात नहीँ है। कोई नहीँ डूबेगा । सब मेरे पीछे-पीछे आओ ।'
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ऐसा कह वे नदी मेँ उतर गए । सभी उनके पीछे चलने लगे। अचानक गणितज्ञ जी को चीखने की आवाज़ेँ सुनाई पड़ी। देखा तो बच्चे डूब रहे थे। गणितज्ञ महोदय अपनी भौँहेँ सिकोड़ते हुए बोले- 'ऐसा कैसे हो सकता है ? मेरी गणना कभी गलत नहीँ हो सकती। ...
लेकिन फिर ये बच्चे क्योँ डूबे ...?' 
अब वे सोचते ही रह गए कि-- 
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अरबा ज्योँ का त्योँ, फिर कुनबा डूबा क्योँ ?'
इसलिए कहा गया कि केवल किताबी ज्ञान से लदी बुद्धि सही निर्णय नहीँ ले सकती है । जीवन मेँ अनुभव यानी(practical knowledge) बहुत ज़रुरी है ।
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ईश्वर के संबंध मेँ भी यही बातेँ लागू होती है। अक्सर लोग अनेकानेक वेद-शास्त्रोँ को पढ़कर खुद को बहुत बड़ा ईश्वर-भक्त मानने लगते हैँ। चर्चाओँ और तर्क-वितर्क मेँ उलझे रहते हैँ । परंतु, हर बार यही देखा गया है कि उनके ये कोरे शब्द उन्हेँ जीवन की उलझनोँ से पार नहीँ करा पाते।
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वास्तविकता तो यह है कि केवल विद्वता और शास्त्रीय ज्ञान से भवसागर को पार नहीँ किया जा सकता है। जो ऐसा करने की सोचेगा, वह खुद भी डूबेगा और अपने पर आश्रित लोगोँ को भी डुबाएगा ।
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भवसागर को पार करने का एकमात्र शाश्वत व सनातन उपाय है - ब्रह्मज्ञान ! यानी ईश्वरीय भाव की प्रत्यक्ष अनुभूति। जो केवल सत्य,चित्त,शुद्ध ह्रदय से प्राप्त हो सकती हैँ ।

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