॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*शूरातन का अंग २४*
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*पतिव्रत निष्काम*
*दादू सेवक सो भला, सेवै तन मन लाइ ।*
*दादू साहिब छाड़ कर, काहू संग न जाइ ॥५७॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! वही शूरवीर पतिव्रत - धर्म धारण करने वाला सेवक भला अर्थात् श्रेष्ठ है, जो अपने तन और मन को बाहर के विषयों से रहित करके, परमेश्वर की आराधना में लगाता है । फिर वह परमेश्वर का त्याग करके किसी भी वासनाओं के साथ नहीं जाता ॥५७॥
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*पतिव्रता निज पीव को, सेवै दिन अरु रात ।*
*दादू पति को छाड़ कर, काहू संग न जात ॥५८॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! जैसे सच्ची पतिव्रता स्त्री, पति की रात - दिन आराधना में लगी रहती है । पतिव्रत - धर्म को छोड़कर, किसी भी बहिरंग साधनों में नहीं जाती है । इसी प्रकार परमेश्वर के सच्चे शूरवीर, पतिव्रत - धर्म धारण करने वाले सेवक, परमेश्वर को छोड़कर किसी अन्य बहिरंग साधनों में नहीं जाते ॥५८॥
सूर्यवंशी कमलनी, शशि सन्मुख कुमलाइ ।
ज्यूं रज्जब रत राम सौं, दूजा दिल न समाइ ॥
सिंह न सूंघै घास कौं, जे बहुते होहि पास ।
त्यूं रज्जब दीदार बिन, कछु न चाहै दास ॥
सुर नर देवी देवता, सब जग देखा जोइ ।
रज्जब नांहि राम - सा, सगा सनेही कोइ ॥
(क्रमशः)
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