॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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*काल का अंग २५*
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*दादू अवसर चल गया, बरियां गई बिहाइ ।*
*कर छिटके कहँ पाइये, जन्म अमोलक जाइ ॥५७॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! यह मनुष्य देह रूपी अवसर कहिये समय, राम भजन के बिना व्यर्थ जा रहा है । अर्थात् अन्तःकरण की वृत्ति बहिर्मुख साधनों में प्रवृत्त होवे, तो फिर आत्म - तत्त्व कैसे प्राप्त हो सकता है ? इसीलिये अज्ञानी मनुष्यों का यह अमूल्य मनुष्य - जीवन वृथा ही जा रहा है ॥५७॥
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*दादू गाफिल ह्वै रह्या, गहिला हुवा गँवार ।*
*सो दिन चित्त न आवई, सोवै पांव पसार ॥५८॥*
टीका ~ हे जिज्ञासुओं ! परमेश्वर के मार्ग से बिछड़े हुए विषय - वासनाओं में पागल, विषयों के यार, भगवत् - विमुख होकर, जब जीव, मायावी प्रपंच में आसक्त होकर, पागल हो रहे हैं, और अन्त समय नजदीक आ रहा है । उसकी किसी को भी चिन्ता नहीं है । सभी जन पांव पसार कर सोते हैं, अर्थात् विषय - वासनाओं के मनोरथ करते रहते हैं । अथवा यह जीव जिस रोज लम्बे पांव फैलावेगा अर्थात् प्राण पिण्ड का वियोग होगा, उस अन्त समय का विचार करके हे जीव ! इस मिथ्या माया के मोह को छोड़ कर अब हरि का स्मरण कर ॥५८॥
‘जैमल’ कायर का भयो, सूरातन की बार ।
सिर साहिब को सौंपता, सोचै कहा गँवार ॥
(क्रमशः)
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