॥ दादूराम सत्यराम ॥
*"श्री दादूदयाल वाणी(आत्म-दर्शन)"*
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
.
*काल का अंग २५*
.
*दादू कहॉं मुहम्मद मीर था, सब नबियों सिरताज ।*
*सो भी मर माटी हुवा, अमर अलह का राज ॥८३॥*
टीका ~ हे जिज्ञासु ! काल की गति बड़ी बुलन्द है । देखो, मोहम्मद साहब, सब नबियों के शिरोमणी, उनका भी शरीर काल ने खा लिया और वह मिट्टी हो गया, और की क्या चली ? इसलिये अमर तो एक अल्लाह और उसका नाम ही है ॥८३॥
.
*केते मर मांटी भये, बहुत बड़े बलवन्त ।*
*दादू केते ह्वै गये, दाना देव अनन्त ॥८४॥*
टीका ~ हे जिज्ञासु ! इस पृथ्वी के ऊपर बड़े बड़े बलवान् हुए परन्तु उनके भी शऱीर सब मिट्टी हो गये । कितने ही दाना और अनन्त देव पृथ्वी के ऊपर हो गये । समय पाकर उन सभी के शऱीर मृत्तिका में मिल गये ॥८४॥
जल बुदबुदा हु का बदन, बादर छांह विश्राम ।
और सकल सुख रामबिन, ऐसे हैं बेकाम ॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें