गुरुवार, 27 फ़रवरी 2014

कुसंगति केते गये ~ १०९/१५

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साधू का अंग १५/१०९*
*कुसंगति केते गये, तिनका नाम न ठांव ।*
*दादू ते क्यों उद्धरैं, साधु नहीं जिस गांव ॥१०९॥*
प्राचीन दृष्टांत - 
नारद कोपा संत बिन, कोप कह इक बैन ।
संत शरण नगरी बची, वज्र शिला से चैन ॥२५॥
उक्त १०९ की साखी के उत्तरार्ध पर दृष्टांत है - नारदजी भ्रमण करते हुये एक ग्राम में आये तो वहां के लोगों का बुरा व्यवहार देखकर सोचा - यह लोग इतने हीन विचारों के क्यों हैं ? इनको शिक्षा देने वाला कोई संत इस ग्राम में नहीं है क्या ? फिर उन्हें ज्ञात हुआ कि इस ग्राम में संत तो नहीं है । तब नारदजी ने सोचा - इस ग्राम के मनुष्य महान पापों में पड़कर उनका फल दुःखी हीं पावेंगे । इनके स्वभाव को बदलना तो कठिन है किन्तु यह ग्राम नष्ट हो जाय तो ये लोग पापों से बचकर अगले जन्म में धर्म संपादन के द्वारा अपना हित कर सकते हैं । 
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उक्त विचार करके नारदजी ने ग्राम को शाप दिया कि इस ग्राम पर वज्र शिला पड़ जाय । वज्र पड़ने का शाप सुनकर ग्राम के सज्जन लोग अपने ग्राम की सीमा पर दूसरे ग्राम की सीमा में एक श्रेष्ठ संत रहते थे । उनकी शरण में गये और उक्त कथा सुनाई । तब संत ने कहा - घबराओ नहीं ईश्वर रक्षा करेंगे । फिर संत ने वज्र को अपनी योग - शक्ति से उस ग्राम के बाहर एक स्थान में भूत रहते थे, वहां पर पटका जिससे उस वज्र शिला के पड़ने पर भी संत कृपा से भूतों का नाश होने से ग्राम को चैन अर्थात् आनन्द ही प्राप्त हुआ । 
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सोई उक्त १०९ की साखी में कहा है - जिस ग्राम में साधु नहीं होते वहां के लोगों का कुसंग से पतन ही होता है । किन्तु संत शरण जाने पर तो उनका भी कल्याण ही होता है, जैसे उक्त ग्राम का हुआ ।
द्वितीय दृष्टांत - 
परोपकारी संत थे, गाव तजा कर छोह ।
तीन ताप पुर को भई, पुनि लाये जन सोह ॥२६॥
एक ग्राम में एक परोपकारी संत रहते थे । ग्राम से भिक्षा लाकर बाहर से आये हुये अतिथि आदि की सेवा करते थे । ग्राम के हरि विमुख लोग उनको कहते थे तुम ग्राम को लूट - लूट कर बाहर के लोगों को खिलाते हो अतः ग्राम छोड़कर चले जाओ । उक्त प्रकार बारम्बार कहने से संत क्षुब्ध होकर चले गये । उनके जाते ही ग्राम में अध्यात्म - शारीरिक रोगादि के अधिभूत - सिंह, सर्प चोरादि के अधिदेव - अतिवृष्टी, अनावृष्टि, वज्र पातादि के उपद्रव बढ़ गये । 
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उक्त तीनों तापों से ग्राम अतिव्यथित होने लगा तब सज्जनों ने कहा - संतों को लौटा कर लाओ तब ही ये उपद्रव शांत होंगे । फिर सब लोग संतों के पास गये और प्रार्थना करके ग्राम में लाये तब सब उपद्रव भी शांत हो गये । सोई उक्त १०९ की साखी में कहा है कि - जिस ग्राम में साधु नहीं हो उसका दुःखों से उद्धार कैसे हो सकता है ।

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