卐 सत्यराम सा 卐
वार पार नहिं नूर का, दादू तेज अनंत ।
कीमत नहीं करतार की, ऐसा है भगवंत ॥
निरसंध नूर अपार है, तेज पुंज सब मांहि ।
दादू जोति अनंत है, आगो पीछो नांहि ॥
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साभार : Kripa Shankar B ~
आध्यात्म जगत में कोई भी उपलब्धी अंतिम नहीं होती| जिसे आप खजाना मानकर खुश होते हो, कुछ समय पश्चात पता लगता है कि वह कोई खजाना नहीं बल्कि कंकर पत्थर का ढेर मात्र था|
आध्यात्मिक अनुभूतियाँ अनंत हैं| जैसे जैसे आप आगे बढ़ते हो पीछे की अनुभूतियाँ महत्वहीन होती जाती हैं| यहाँ तो बस एक ही काम है कि बढ़ते रहो, बढ़ते रहो और बढ़ते रहो| पीछे मुड़कर ही मत देखो|
अन्य कुछ भी मत देखो, कहीं पर भी दृष्टी मत डालो; सिर्फ और सिर्फ आपका लक्ष्य ही आप के सामने निरंतर ध्रुव तारे की तरह चमकता रहे| फिर चाहे कितना ही अन्धकार हो उसकी कृपा से आपका मार्ग दिखाई देता रहेगा|
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