🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीदादूवाणी०प्रवचनपद्धति* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साधू का अंग १५/११५-११६*
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*दादू सहजैं मेला होयगा, हम तुम हरि के दास ।*
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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*साधू का अंग १५/११५-११६*
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*दादू सहजैं मेला होयगा, हम तुम हरि के दास ।*
*अंतर गति तो मिल रहे, पुनः प्रकट परकास ॥११५॥*
प्रसंग कथा - जगजीवनजी टहलड़ी, आंधी थे गुरु देव ।
ताहि समय साखी लिखी, जगजीवन प्रति भेव ॥२९॥
दादूजी जब आंधी ग्राम में चातुर्मास कर रहे थे तब जगजीवनजी ने दादूजी को पत्र लिखा था कि मैं तो आप की आज्ञा है टहलड़ी पर ही रह कर भजन करो । उसका उलंघन करके आंधी आ नहीं सकात अतः आप ही चातुर्मासे से उठते ही टहलड़ी पधारने की कृपा अवश्य करना । उक्त पत्र के उत्तर रूप में दादूजी ने उक्त ११५ की साखी लिख कर जगजीवन के पास भेजी थी ।
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*दादू मम शिर मोटे भाग, साधू का दर्शन किया ।*
*कहा करे जम काल, राम रसायन भर पिया ॥११६॥*
प्रसंग कथा - आप निराणे गुहा में, संतन दिया दीदार ।
तब या साखी पद कहा, रामकली मधि सार ॥३०॥
नारायण ग्राम में एक दिन रात्रि के समय दादूजी के पास भूतकाल के उच्चकोटि के संत गुफा में पधारे थे तब उक्त ११६ की साखी और राम रामकली में स्थित १९८ का पद -
आज हमारे रामजी साधु घर आये ।
मंगला चार चहुँ दिशि भये, आनन्द बधाये ॥टेक॥
यह चार चरण का पद दादूजी ने उनके सामने कहकर उनका स्वागत सत्कार किया था । फिर सब अपने अपने विचारों के कथन श्रवण रूप गोष्ठी रात्रि भर करते रहे थे । वे आकाश मार्ग से ही रात्रि में आये और आकाश मार्ग से ही रात्रि की चौथी पहर में पधार गये थे किन्तु गुफा के द्वार पर स्थित रात्रि की उक्त गोष्ठी टीलाजी सुनते रहे थे । प्रातः दादूजी से टीलाजी ने पू़छा तब दादूजी ने टीला को अधिकारी जानकर उक्त गोष्ठी का परिचय दिया था ।
इति श्री साधु का अंग १५ समाप्तः
प्रसंग कथा - जगजीवनजी टहलड़ी, आंधी थे गुरु देव ।
ताहि समय साखी लिखी, जगजीवन प्रति भेव ॥२९॥
दादूजी जब आंधी ग्राम में चातुर्मास कर रहे थे तब जगजीवनजी ने दादूजी को पत्र लिखा था कि मैं तो आप की आज्ञा है टहलड़ी पर ही रह कर भजन करो । उसका उलंघन करके आंधी आ नहीं सकात अतः आप ही चातुर्मासे से उठते ही टहलड़ी पधारने की कृपा अवश्य करना । उक्त पत्र के उत्तर रूप में दादूजी ने उक्त ११५ की साखी लिख कर जगजीवन के पास भेजी थी ।
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*दादू मम शिर मोटे भाग, साधू का दर्शन किया ।*
*कहा करे जम काल, राम रसायन भर पिया ॥११६॥*
प्रसंग कथा - आप निराणे गुहा में, संतन दिया दीदार ।
तब या साखी पद कहा, रामकली मधि सार ॥३०॥
नारायण ग्राम में एक दिन रात्रि के समय दादूजी के पास भूतकाल के उच्चकोटि के संत गुफा में पधारे थे तब उक्त ११६ की साखी और राम रामकली में स्थित १९८ का पद -
आज हमारे रामजी साधु घर आये ।
मंगला चार चहुँ दिशि भये, आनन्द बधाये ॥टेक॥
यह चार चरण का पद दादूजी ने उनके सामने कहकर उनका स्वागत सत्कार किया था । फिर सब अपने अपने विचारों के कथन श्रवण रूप गोष्ठी रात्रि भर करते रहे थे । वे आकाश मार्ग से ही रात्रि में आये और आकाश मार्ग से ही रात्रि की चौथी पहर में पधार गये थे किन्तु गुफा के द्वार पर स्थित रात्रि की उक्त गोष्ठी टीलाजी सुनते रहे थे । प्रातः दादूजी से टीलाजी ने पू़छा तब दादूजी ने टीला को अधिकारी जानकर उक्त गोष्ठी का परिचय दिया था ।
इति श्री साधु का अंग १५ समाप्तः
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