मंगलवार, 4 मार्च 2014

कलियुग कूकर कल मुहां ~ ५६/१६

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साभार ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
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*मध्य का अंग १६/५६*
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*कलियुग कूकर कल मुहां, उठ उठ लागे धाइ ।*
*दादू क्यों कर छूटिये, कलयुग बड़ी बलाइ ॥५६॥*
दृष्टांत - 
कलियुग साधू रूपधर, किये उपद्रव तीन ।
जन राघव ता नगर का, धर्म ले गया छीन ॥५॥
एक नगर में एक अच्छे वक्ता संत प्रवचन करते थे । राजा तथा राणी आदि राज परिवार और प्रजा के लोग अति श्रद्धा से सुनते थे । उनके यथार्थ प्रवचन से धर्म का यथार्थ प्रचार तथा भगवद् भक्ति की वृद्धि हो रही थी । 
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एक दिन कलियुग साधु का रूप धारण करके उक्त संत के पास आया और बोला - भगवन ! यह कलियुग का समय है, अतः आप कु़छ काल्पनिक मिथ्या बातें भी प्रवचन में कहा करो और लोगों को बताया भी करो । संत ने कहा - हमसे तो ऐसा नहीं होगा । साधु ने कहा - मैं कलियुग हूं, मेरे समय में आप को ऐसा करना ही पड़ेगा । तो भी संतजी ने नहीं माना । तब कलियुग यह कह कर चला गया कि नहीं मानते हो तो फिर मेरी लीला देखना । 
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दूसरे दिन एक गरीब गर्भवती स्त्री का रूप धारण करके आया और कथा करते समय सबको सुनाकर बोला - महाराज ! आपने मेरे संग का सुख भोगा किन्तु मेरे गर्भ रह गया अब पूरे महिनों का होने आया है, मुझसे अब विशेष काम नहीं होता । अतः आपको मेरे खाने पीने का प्रबन्ध तो अवश्य करना ही चाहिये । संत ने कहा - ठीक है, करेंगे । यह सुनकर बहुत से श्रोताओं की संत से श्रद्धा हट गई । वे दूसरे दिन कथा सुनने नहीं आये । 
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दूसरे दिन कलियुग कसाई रूप बना कर आया और कथा के समय सबको सुनाकर कहा - महाराज ! आपको मांस ला ला कर खाते बहुत दिन हो गये अब तो पैसे दो । संत ने कहा - देंगे । यह सुनकर आज भी बहुत से श्रोताओं की अश्रद्धा हो गई । अतः वे भी दूसरे दिन नहीं आये । तीसरे दिन कलियुग कलाल का रूप बना कर आया और कथा करते समय सब को सुना कर बोला - महाराज ! शराब के पैसे बहुत चढ़ गये हैं अब तो दो । संतजी ने कहा - देंगे । यह सुन कर जो आज आये थे उन सबको भी अश्रद्धा हो गई किन्तु राजा राणी की श्रद्धा तो संत पर पूर्ववत ही रही । 
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कलियुग की उक्त माया देख कर भी संत तो हरि भक्ति में ही लीन रहे किन्तु कलियुग संत में अश्रद्धा कर कर नगर का धर्म छीन ले गया । इतना होने पर भी जब संत शांत ही रहे और अपने समय पर कथा भी करते रहे । राजा राणी उनकी स्थिती को देख कर विचलित नहीं हुये । फिर अन्त में कलियुग ने भी संतजी के चरणों पड़ कर क्षमा याचना की और यथार्थता का निर्णय होने पर पुनः संत की पूर्व से भी अधिक प्रतिष्ठा हुई । सोई उक्त ५६ की साखी में कहा है कि कलियुग ऐसा है उससे उक्त संत के समान ही बच सकते हैं ।

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