गुरुवार, 31 जुलाई 2014

= स. त. ३२-३५ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“सप्तदशी तरंग” २७-२९)*
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*तरंग - सारांश ~ करड़ाला जी एक वर्ष विराजे*
अम्बपुरी तजि आय कल्याणहिं, 
पीथल को उपदेश दिये हैं । 
भूरसि सर्वहिं संत पधारत, 
पास कल्याणपुरी जु गये हैं ॥ 
वर्ष व्यतीत भये रमिये गुरु, 
ईड़व गूलर वर्ष रह्ये है । 
यों रमिये सबहीं सुखदायक,
 माधवदास बखान किये हैं ॥३२॥ 
इस तरह इस तरंग में अम्बापुरी से पधार कर स्वामी श्री दादूजी कल्याणपुरी विराजे, पीथल को उपदेश दिया । भूरसी ग्राम से सभी संत कल्याणपुरी में आकर मिले । एक वर्ष वहाँ विराजने के बाद स्वामीजी पश्‍चिम दिशा में मरुधर क्षेत्र की रामत के लिये पधारे । ईड़वा गूलर आदि ग्रामों में रामत करते हुये एक वर्ष व्यतीत किया, सभी सेवक भक्तों को ज्ञानोपदेश का सुख दिया । माधवदास व्याख्यान करते हैं कि - संत पधारने से तत्रत्य ग्राम निवासी कृतकृत्य हो गये ॥३२॥ 
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*रामदास जी भजनीक ७ गावों को त्यागकर शिष्य हुये*
दोहा ~
सात ग्राम तजिकर भये, गुरु दादू के शिष्य ।
रामदास भजनीक जू, उज्जवल कियो भविष्य ॥३३॥ 
नर्बद दूजन दास जू, मेड़त में रघुनाथ ।
एते शिष या तरंग में, सतगुरु कियो सनाथ ॥३४॥
सप्तदशी या तरंग में, रमणी कथा प्रसंग ।
माधव मरुधर देश में, रमिये मंडलि संग ॥३५॥
रामदास भजनीक सात ग्रामों का आधिपत्य छोड़कर सद्गुरु के शिष्य हो गये ओर अपना भविष्य उज्जवल बनाया । नर्बदसिंह दूजन दास, रघुनाथ सिंह आदि मेड़ते ग्राम में गुरु शरण होकर सनाथ हो गये । इस तरह सत्रहवीं इस तरंग में स्वामी श्री दादूजी की मरुधर - रामत का प्रसंग वर्णित हुआ है । माधवदास सद्गुरु कृपा से उपकृत हुआ, धन्य हुआ ॥३३-३५॥ 

इति माधवदास विरचिते श्री संतगुण सागरामृत 
पीथल उपदेश मरुधर - रमणी निरूपण ॥
॥ इति सप्तदशी तरंग सम्पूर्ण ॥१७

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