🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
.
*(“सप्तदशी तरंग” २५-२६)*
.
*मनोहर छन्द*
*श्री दादू जी इड़वा में विराजते आठ महिना हुये*
ईड़वे विराजमान, मास वसु भये जान,
गूलर में माधो आन, करत प्रणाम जू ।
स्वामीजी पधारो मोय, आसन सुफल होय,
अरज सुनत गुरु करी सतराम जू ।
*गूलर में माधोदास जी ने चातुरमास कराया*
गूलर में कियो बास, स्वामीजी चतुर्मास,
षोड़श साधुन्ह पास दिये दादूराम जू ।
विदा होत काती सुदी, त्रयोदशी शुभ तिथि,
माधो मांगे देहु वर, सारो सब काज जू ॥२५॥
ईड़वा ग्राम में विराजते हुये श्री दादूजी को आठ मास बीत गये, तब गूलर ग्राम से माधवदास ने आकर गुरु चरणों में प्रणाम किया, और निवेदन किया कि - हे गुरुदेव ! मेरे स्थान पर भी पधारो, जिससे वह सुफल हो जाय । प्रार्थना सुनकर स्वामीजी ने सत्यराम उच्चारण किया और गूलर ग्राम में पधार आये । सोलह शिष्यों के साथ वहाँ चातुर्मास किया । कार्तिक शुक्ला त्रयोदशी को जब भी दादूजी विदा होने लगे, तब माधवदास ने प्रार्थना पूर्वक सद्गुरु से वरदान मांगा कि - मेरे सब कार्य आप ही संपूर्ण करना ॥२५॥
.
*मालती छन्द(स्तुति)*
नमो गुरुदेव, लख्यो नहिं भेव,
तुम्हीं नित्य देव, चिदानन्द सेव ।
सभी रंक राव, गहें तब पाँव,
उछाव उछाव उछाव उछाव ॥
तजे जग जाल, तुम्हीं तत्काल,
किये जु निहाल, मिटे दुख साल ।
नमो रिछपाल, सबै प्रतिपाल,
दयाल दयाल दयाल दयाल ॥
परायण पंथ, रचे भगवन्त,
कहे सब ग्रन्थ, अपार अनन्त ।
दिपै ब्रह्मंड, तपे नव खंड,
अखंड अखंड अखंड अखंड ॥
भक्ति जहाज, तिरे जु समाज,
कियो सब काज, बंधी दृढ पाज ।
दयालु विराज, गरीब निवाज,
धिराज धिराज धिराज धिराज ॥
नमो निरबाण, सबै दुखभान,
दियो वरदान, सबै दृढ ज्ञान ।
निरंजन ध्यान, सदा भगवान,
निदान निदान निदान निदान ॥२६॥
हे गुरुदेव ! आपका भेद लक्षित(लखा) नहीं होता, आप नित्य सच्चिदानन्द की सेवा में संलग्न रहते हैं । सभी राजा और रंक आपकी चरण शरण पाकर उत्सव मनाते हैं । आपने सभी जगजंजाल त्याग दिये हैं, शरणागतों के दु:ख तत्काल दूर करके निहाल कर देते हैं ।
हे सबके रक्षक, प्रतिपालक, दयालु ! आपको बारंबार नमस्कार है । आपने भगवत् प्राप्ति हेतु परायण ब्रह्मपंथ की रचना की, सभी ग्रन्थों का अनन्त अपार सार अपनी वाणी में उजागर किया, नवखंड पृथ्वी और ब्रह्माण्ड में आपका नाम देदीप्यमान हो रहा है ।
आप अखंड ब्रह्म के उपासक स्वयं अखंड रूप है । आपके भक्तिरूपी जहाज से अनन्त समाज तिर रहा है, और तिरेगा । सभी भक्तों के कार्य आपने संपूर्ण किये हैं, भक्ति ज्ञान की दृढ पद्धति को बांधा है । हे गरीब नवाज ! दयालु ! आप संतों में अधिराज हैं ।
निर्वाणवंशी पीथा आपको नमन करके शरण में आया, उसके सब दु:ख आपने दूर किये, वरदान देकर दृढज्ञान दिया । अथवा निर्वाण(मुक्ति) का मार्ग बताने वाले आपको नमस्कार है । निरंजन भगवान का ध्यान करने वाले हे संत ! आप ही भक्तों के कल्याण का निदान(आधार) हैं ॥२६॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें