🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#श्रीदादूदयालवाणी०आत्मदर्शन* द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग गौड़ी १(गायन समय दिन ३ से ६)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
.
दोहा ~ बन्ध हरण सुख करण, श्री दादू दीनदयाल ।
पढ़ै सुनै जो ग्रन्थ यह, ताके हरहु जंजाल ॥
.
१. स्मरण शूरातन नाम निश्चय । त्रिताल
राम नाम नहीं छाडूं भाई,
प्राण तजूं निकट जीव जाई ॥टेक॥
रती रती कर डारै मोहि,
साँई संग न छाडूं तोहि ॥१॥
भावै ले सिर करवत दे,
जीवन मूरी न छाडूं तोहि ॥२॥
पावक में ले डारै मोहि,
जरै शरीर न छाडूं तोहि ॥३॥
अब दादू ऐसी बन आई,
मिलूं गोपाल निसान१ बजाई ॥४॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! नाम स्मरण में दृढ़ निश्चय पूर्वक शूरवीरता दिखा रहे हैं । ब्रह्मऋषि कहते हैं कि चाहे हम प्राणों का भी त्याग कर सकते हैं । चाहे निकट भविष्य में ही हमारा जीव, शरीर को त्याग कर चला जाय, तो भी हम राम नाम को नहीं त्यागेंगे । चाहे शरीर के ‘रती रती’ कहिए टुकड़े - टुकड़े कर डालें, चाहे मोरध्वज की भाँति सिर पर आरा चला दें, भक्त प्रहलाद की भाँति चाहे शरीर को अग्नि में डाल कर जलावें, तो भी हम जीवन की मूल औषधि(जड़ी) नाम - उस परमेश्वर का स्मरणरूप संग नहीं छोड़ेंगे । अब तो हमारी ऐसी अवस्था हो गई है कि हम नाम रूपी निशान१(ध्वज) चढ़ाकर और भक्ति रूप नगाड़ा बजाकर भगवान से मिलेंगे ।
दृष्टान्त -
धन्य प्रहलाद कीन्हों वाद विधना के काज,
जाहु तन आज मैं न छाडूं टेक राम की ।
अगनि तपायो तन जिये माहीं एक पन,
हरि बिन जाहु जरि, देह कौन काम की ॥
देख्यो कसि जल - थल उबर्यो भजन - बल,
रटत अखंड शरणाई सत्य श्याम की ।
असुर की कसर से नृसिंह स्वरूप धर्यो,
‘राघो’ कहै जीत्यो जन बाँह बरयाम की ॥
दोहा - चातक मीन पतंग मृग, सती सूर दातार ।
हरिजन ये इक तैं लगे, होवै यश संसार ॥
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें