#daduji
||दादूराम सत्यराम||
दादू अबिहड़ आप है, कबहूँ बिहड़े नांहि ।
घटै बधै नहीं एक रस, सब उपज खपै उस मांहि ॥ ९ ॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! आप स्वयं सत्यस्वरूप परमात्मा, न बदलने वाला है । कभी भी उसके चैतन्य स्वरूप में परिवर्तन नहीं आता है । वह न तो कभी घटता है, न कभी बढ़ता है, उसका सदैव एकरस स्वरूप रहता है । नाम रूप सम्पूर्ण वस्तुएँ मायावी हैं उसी में उत्पन्न होती हैं और उसी में समय पाकर विलय हो जाती हैं । जैसे फेन, तरंग, बुदबुदे, लहर, जल से उत्पन्न होकर जल में ही विलय होते रहते हैं ॥ ९ ॥
अबिहड़ अंग बिहड़ै नहीं, अपलट पलट न जाइ ।
दादू अघट एक रस, सब में रह्या समाइ ॥ १० ॥
टीका ~ हे जिज्ञासु ! वह चैतन्य ब्रह्मस्वरूप कूटस्थ, कभी पलटता नहीं है । और न उसमें आने - जाने रूप क्रिया ही है । और फिर ‘अघट’ कहिये वह बेसी कमती भाव को कभी प्राप्त नहीं होता । सबमें सूत्र आत्मारूप से समा रहा है, उसी में अपने मन को लगाइये ॥ १० ॥
हरि अबिहड़ अविनाशि है, सिरजे की प्रतिपाल ।
जगन्नाथ बिसरै नहीं, सुख दुख सब ही काल ॥
अपलट सो पलटै नहीं, अविहड़ बिहर न जाहिं ।
हरि हरिजन जगन्नाथ ये, उभै अडिग जग माहिं ॥
अन्त समय की साखी
जेते गुण व्यापैं जीव को, तेते तैं तजे रे मन ।
साहिब अपणे कारणैं,(भलो निबाह्यो प्रण) ॥ ११ ॥
इति अबिहड़ का अंग सम्पूर्ण ~ ३७ ॥ साखी ११ ॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि जगत्गुरु दादूदयाल जी महाराज कहते हैं कि हे मन ! जितने गुणों के विकार, विषय - वासना, अनात्म - अहंकार आदि तैंने अपने स्वस्वरूप ब्रह्म प्राप्ति के लिये त्यागे । यह तैंने अपना प्रण इस मनुष्य देह में बहुत अच्छा निभाया । अपनी प्रतिज्ञा पूरी करी तैंने, तुझे धन्यवाद है । यह साखी अन्त समय में, परम गुरुदेव महाराज ने उच्चारण की थी ॥ ११ ॥
इति अविहड़ का अंग टीका सहित सम्पूर्ण ~ ३७ ॥ साखी ११ ॥
“अनन्त विभूषित श्री ब्रह्मऋषि जगद्गुरु श्री दादूदयाल जी महाराज की अनुभव वाणी”, पूवार्द्ध भाग की सजीवनी टीका दृष्टान्तों सहित रची -
द्वारा ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी ।
इति ~ ॐ शान्ति ! शान्ति ! शान्ति !
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शुभ सूचना ~ सद्गुरुदेव श्रीमद् दादूदयालजी महाराज की असीम, अहैतुकी अनुकम्पा से उनकी “श्री दादू अनुभव वाणी” का नित्य प्रकाशन फेसबुक पर श्री दादू प्राकट्य जयंती(चैत्रीय नवरात्र की अष्टमी) वि. सं. २०६८(ईस्वी 31/03/2012) से प्रारंभ हुआ | आज शारदीय नवरात्र, वि. सं. २०७१(ईस्वी 25/09/2014) को अत्यन्त सुखद एवं अद्भुत संयोग बना है कि आज ही “वाणी जी” के पूर्वार्ध(साखी भाग) का प्रकाशन यहाँ पूर्ण हो रहा है | अतैव आजसे ही “वाणी जी” के उत्तरार्ध(शब्द भाग) प्रारंभ करनेका आनंदोत्सव है |
गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज की विशेष कृपा से, महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी रचित टीका वाली “वाणी जी” का यह विद्युत् संस्करण हमें प्राप्त हुआ |
सभी संतों महापुरुषों को बारम्बार सत्यराम सहित सादर दण्डवत् ..... कृपा वृष्टि बनी रहे .....
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