卐 सत्यराम सा 卐
परम कथा उस एक की, दूजा नांही आन ।
दादू तन मन लाइ कर, सदा सुरति रस पान ॥
प्रेम कथा हरि की कहै, करै भक्ति ल्यौ लाइ ।
पीवै पिलावै राम रस, सो जन मिलियो आइ ॥
दादू पीवै पिलावै राम रस, प्रेम भक्ति गुण गाइ ।
नित प्रति कथा हरि की करै, हेत सहित ल्यौ लाइ ॥
आन कथा संसार की, हमहिं सुणावै आइ ।
तिसका मुख दादू कहै, दई न दिखाइ ताहि ॥
दादू मुख दिखलाइ साधु का, जे तुमहिं मिलावै आइ ।
तुम मांही अन्तर करै, दई न दिखाइ ताहि ॥
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साभार : Savita Savi Lumb ~
भक्ति में तृप्ति नहीं होनी चाहिये ! वह प्रेम ही क्या जो तृप्त हो जाए ! अतृप्ति ही तृप्ति है ! अगर तृप्त हो गए तो समझो कोई कमी है ! अगर अतृप्त हो तो मानो सही दिशा में चल रहे हो ! आपने अपने जीवन की बागडोर किसको सौंप रखी है ! परमेश्वर से प्रार्थना करते रहना मैं मंदबुद्धि हूँ, कमज़ोर हूँ, आप समर्थ हो, सर्वत्र विद्दयमान परमात्मा मेरे जीवन की बागडोर आप सम्भालो ! सुबह घर से निकलने से पहले श्री अधिष्ठान जी को माथा टेक कर, आशीर्वाद लेकर निकलें, अवश्य सफलता मिलेगी ! ऐसा स्वामी जी महाराज कहा करते थे ! अपने जीवन दाता को, बलदाता को, अपने स्त्रोत को साथ लेकर जा रहे हो तो मंगल क्यों नहीं होगा !

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