मंगलवार, 2 दिसंबर 2014

= “पं. विं. त.” ९/११ =


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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्‍वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पञ्चविंशति तरंग” ९/११)*
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*दोहा*
भयहरणा गिरी तपोवन के नाम से प्रसिद्ध है ~
गुरु दादू के शिष्य शत, भजन करें धरि ध्यान ।
भय हरणां गिरि कन्दरा, तपे तपोवन स्थान ॥९॥
गुरुदेव श्री दादूजी की आज्ञानुसार उनके सौ शिष्य, भयहरण गिरि की कन्दराओं में जाकर भजन करने लगे । गरीबदासजी, भाई मसकीनदासजी के साथ जाकर बार - बार उन्हें संभालते रहते । समीपस्थ ग्रामों के सेवक भक्त उन तपस्वियों के लिये दूध पहुँचा दिया करते थे ॥९॥
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*इन्दव छन्द*
*सौ शिष्य तपस्या में लीन ~*
संत सभी गुरु आयसु धारत,
ब्रह्महिं ध्यान करें लय लाई ।
शुद्ध तपोवन भयहरणां गिरि,
अन्न तजे पय पान कराई ।
पासहिं ग्राम बसे जन सेवक,
संतहिं सेवन को चित लाई ।
एक समै सब बाहर आवत,
गुप्त रहें पुनि ध्यान लगाई ॥१०॥
सेर सवानित दूध लहें जन,
पूरण योग समाधि उपासी ।
ब्रह्महिं ध्यान धरें गिरिकन्दर,
यों निरविघ्न रहें अन्यासी ।
नाम बखा करूं तिन सन्तन,
जो शत शिष्यजु तेज उजासी ।
माधवदास सुभ्रात सभी जन,
श्री हरि प्रेमहिं प्यास प्रकाशी ॥११॥
सभी तपस्वी संत पय पान के लिये केवल एक बार ही दिन में अपनी तप:स्थली से बाहर आते थे । शेष समय गुप्त रहकर ही भजन ध्यान करते रहते । प्रत्येक साधु सवा सेर दूध नित्यप्रति ग्रहण किया करते, पश्‍चात् पूर्ण योग समाधि में लीन होकर निर्विघ्न ब्रह्मध्यान का अभ्यास करते रहते । मैं माधवदास अब उन तपस्वी सौ गुरुभाइयों के नामों का व्याख्यान कर रहा हूँ, जो श्रीहरि के प्रेम में अन्तर्मन की प्यास के साथ तपस्या कर रहे थे ॥१० - ११॥
(क्रमशः)

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