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*श्री सन्त-गुण-सागरामृत श्री दादूराम कथा अतिपावन गंगा* ~
स्वामी माधवदास जी कृत श्री दादूदयालु जी महाराज का प्राकट्य लीला चरित्र ~
संपादक-प्रकाशक : गुरुवर्य महन्त महामण्डलेश्वर संत स्वामी क्षमाराम जी ~
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*(“पञ्चविंशति तरंग” २२/२३)*
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*मुख्य सेवक नाम,*
*मनोहर छन्द*
रामदास ताराचंद पूरण रु लाखा जन,
नरहरि सारण शरण गुरु लह्ये है ॥
भगवान मान नृप अकबर बीरबल,
सूरी खींची सेव किये, गुरु पाद गह्ये हैं ॥
पीथा निर्वाण कछावाह वंश ईश्वर,
लाडखानी गोविन्द भगत धन्य भये हैं ॥
जैमल रु नारायण भोजनृप परिजन,
गुरु दरशन पाय, धन्य भाग लह्ये है ॥२२॥
तत्कालीन मुख्य सेवकों के नाम -
रामदास, ताराचंद, पूरणदास, लाखाराम, नरहरि, सारण आदि ने गुरुदेव की शरण ग्रहण की । राजा भगवानदास, राजा मानसिंह, अकबर, बीरबल, सूरी खींची आदि ने गुरुसेवा में यश अर्जित किया, गुरुचरण कमलों का प्रसाद पाया । पीथा निर्वाण वंशी, कछावाहा - वंशी ईश्वर, लाडखानी गोविन्दराम आदि भक्त गुरुकृपा से धन्य हुए । जैमल, नारायणसिंह, भोजराज आदि राज परिवार गुरु दर्शनों से धन्य - धन्य हो गया, अपना जीवन सफल बनाया ॥२२॥
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हीराबाई नेमाबाई रामाबाई जमनाबाई,
गंगाबाई लाडांबाई भगवन्ती नांव है ॥
रतना यशोदाबाई उमाबाई सीताबाई,
तुलसी संतोषीबाई - रुकमणी भाव है ॥
राणीबाई जोधाबाई राणी कनकावती,
ऐती बाई भक्ती करी, धारे गुरुभाव है ॥
माधव कहत जन, हिरदा में राम धन,
दादूराम दादूराम गहीभव नाव है ॥२३॥
हीराबाई, नेमाबाई, रामाबाई, जमुनाबाई, गंगाबाई, लाडांबाई, भगवन्ती, रतना, यशोदाबाई, उमाबाई, सीताबाई, तुलसी, संतोषीबाई, रुक्मणीबाई आदि के मनों में गुरुदेव के प्रति अगाध श्रद्धाभाव रहा । राणीबाई, जोधाबाई, राणी कनकावती आदि ने ऐसी गुरुभक्ति प्रस्तुत की, जिससे अन्य भक्त सेवकों को आदर्श प्रेरणा मिली । माधवदास कहते हैं कि - इन भक्त सेवकों ने हृदय में रामरूपी धन को धारण किया, दादूराम - दादूराम जपते हुए गुरुनाम को नाव के समान अपनाकर भवसागर पार किया ॥२३॥
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इति माधवदास विरचिते श्री संतगुण सागरामृत
श्रीगुरुवाणी स्थापना, शिष्य नाम निरुपण ॥
इति पंचविंशति - तरंग सम्पूर्ण ॥२५
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