#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
आगे जाइ पछतावन लागो, पल पल यहु तन छीजे ।
तातैं जिय समझाइ कहूँ रे, सुकृत अब तैं कीजे ॥
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Ritesh Srivastava ~
कभी कभी छोटे से आदमी से भी बड़ी सीख मिल जाती है ॥हरी ॐ॥
एक सूफी संत थे उनका सह स्वभाव था कि वे अपने पास आने वाले शिष्यों व आगंतुको की परीक्षा लिया करते थे. वे ऐसे प्रश्न करते जिनके उत्तर देने मे सामने वाले को थोड़ी अड़चन होती और फिर वे उसका समाधान करते इसके पीछे उनका उपदेश्य लोकहित और परोपकार का संदेश देना होता था.
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एक बार वे जंगल की और से जा रहे थे कि सामने एक चरवाहा सामने दिखाई दिया, जो बकरियां चरा रहा था. उसके पास पहुँचकर उसकी परीक्षा लेना चाही. वे उसके पास गए और बोले तुम्हारे पास सैकड़ों बकरियां है इनमें से एक मुझे दे दो. चरवाहे ने मालिक का हवाला दिया और ऐसा करने से मना कर दिया.
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तब वे बोले इतनी ढेर सारी बकरियों मे से यदि एक कम भी हो जाएगी तो तुम्हारे मालिक को पता भी नहीं चल पाएगा. मगर चरवाहे ने मना कर दिया उसे बहुत लालच दिया पर वो नहीं माना. और बोला भले ही मालिक यहाँ नहीं है लेकिन वह जो सारी दुनिया का मालिक है मुझे देख रहा है. यदि मैं एक बकरी आपको दे दूँगा तो भले ही मेरे मालिक को पता न चले मगर उस ऊपरवाले मालिक को जरूर पता चल जाएगा. अत: आप मुझे माफ करें.
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उसकी बात सुनकर वह सूफी संत बहुत प्रसन्न हो गए उनकी परीक्षा में चरवाहा पूरी तरह खरा उतरा था. वह उसके साथ ही उसके मालिक के पास पहुँचे उसका मालिक सूफी संत को अच्छी तरह जानता है. वहाँ पर पहुँच कर उन्होंने चरवाहे की पूरी बात उसके मालिक को बताई.
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वो चरवाहा उसका गुलाम था वे उसके मालिक से बोले तुमने इस खुदा के बंदे को गुलाम बनाकर गुनाह किया है. जो लाख कहने के बाद भी सैकड़ों बकरीयों मे से एक बकरी को देने से मना कर दिया में उसकी ईमानदारी को सलाम करता हूँ. उनकी समझाइश के बाद मालिक ने उस गुलाम को माफ कर दिया और बहुत सी अशर्फियाँ भी उपहार में दी.
॥वन्दे मातरम्॥

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