सोमवार, 9 फ़रवरी 2015

= १२० =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
मति बुद्धि विवेक विचार बिन, 
माणस पशु समान ।
समझायां समझै नहीं, दादू परम गियान ॥ 
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साभार : Rp Tripathi ~
**जीवन-रूपांतरण ? :: संत-मत** 

यदि हम जीवन में किसी भी कारण से असंतुष्ट हैं, और जीवन में रूपांतरण चाहते हैं, तो हमें संतों के अनुसार, विवेकपूर्ण जीवन जीने की कला को, जीवन में महत्त्व, देना ही होगा !! 
विवेक-पूर्ण जीवन की कला से उनका अभिप्राय है - 
जब तक हम जीवात्मा, इस भौतिक-मानव-शरीर में हैं, तब तक, इस भौतिक सँसार के प्रत्येक जीव/वस्तु को ही नहीं, उसके रचियता को भी, समुचित आदर दें !! 
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यह भौतिक-सँसार मूलतः, अष्ठ धातुओं {पञ्च-महाभूत(मिटटी, जल, वायु, अग्नि, आकाश) और मन, बुद्धि तथा अहँकार} का मिश्रण है …!! यदि हम इन तत्वों को, जैसा स्वयं के लिए महत्त्व देते हैं, वैसा ही दूसरों के लिए महत्त्व देना सीख लें, तो जीवन में हम कभी, दुखी नहीं हो सकते !!
उदाहणार्थ - 
जैसे, एक महाभूत, वायु को ही लें, यह हमें कितनी प्रिय है !! यदि यह हमें, दो मिनिट भी ना मिले, तो ऐसा लगता है कि, हमारे प्राण ही निकल रहे हैं, और हमारी स्वांश रोकने वाला तो हमारा, सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है !! अतः हम, दूसरों के लिए भी, इन तत्वों(भोजन, जल, वायु आदि) के, हरण करने वाले, ना बनें !! 
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यही व्योहार हम, मन-बुद्धि-अहँकार के लिए भी अपनायें !! अर्थात जिस तरह हम स्वयं के, मन(विचारों), बुद्धि(तर्क-शक्ति) और अहँकार(व्यक्तिगत-सत्ता) को महत्त्व देते हैं, उसी तरह हम दूसरों के, विचारों, तर्कों, और अस्तित्व को, महत्व दें !! 
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और सबसे महत्पूर्ण बात -
इस भौतिक-सँसार के रचियता(परमात्मा) को, अपने ह्रदय-कमल में, महावीर हनुमानजी जैसे स्थापित कर, स्वांश-प्रस्वांश में उनकी कृपा का धन्यवाद करना और उनसे परामर्श लेना ना भूलें, क्योकि उन्हीं एक परमात्मा की कृपा से, हमें प्राणवायु समेत, ये सम्पूर्ण प्रकृति, मिली हुई है, और उन्हीं के नियमों से यह, अनादिकाल से संचालित है !! 
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यदि हम सिर्फ उनकी प्रकृति से नाता रखें, उनसे या उनके नियम क़ानून से नहीं, तो यह ऐसा ही होगा, जैसे हमें, माता-पिता की संपत्ति से तो प्रेम हो, परन्तु माता पिता या उनकी सीख से नहीं ? अतः माता-पिता हमारे साथ घर में नहीं, वरन किसी ओल्ड होम में रहें !! और हम अपनी मर्जी से जैसा चाहें, वैसा जीवन बिताएं !! 
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इसी तरह इश्वर भी हमारे हृदय में नहीं, वरन इस संसार से कहीं दूर, स्वर्ग/वैकुण्ठ में रहे, जहाँ से वह हमारे कार्यों में दखल ना दे सके, और हम बिना किसी नियम कायदे के, अपनी मर्जी के मालिक बन, बेरोकटोक, उसकी बस्तुओं के मजे लूटने का प्रयास करते रहें !! 
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विवेक के अभाब में हम स्वेच्छाचारी हो जाते हैं !! 
बिचार करे यदि सभी, सड़क पर ही क्या, घर में ही, अपनी मन-मर्जी के यातायात नियम बना लें, तो क्या कोई कहीं पहुँच पायेगा ? या एक दुसरे से टकराने से कभी बच पायेगा ? 
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********ॐ कृष्णम वन्दे जगत गुरुम********

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