शनिवार, 7 फ़रवरी 2015

= १०३ =

#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
तूँ ही मेरे रसना, तूँ ही मेरे बैना,
तूँ ही मेरे श्रवना, तूँ ही मेरे नैना ॥टेक॥
तूँ ही मेरे आतम कँवल मंझारी,
तूँ ही मेरी मनसा, तुम पर वारी ॥१॥
तूँ ही मेरे मन ही, तूँ ही मेरे श्वासा,
तूँ ही मेरे सुरतैं प्राण निवासा ॥२॥
तूँ ही मेरे नखशिख सकल शरीरा,
तूँ ही मेरे जियरे ज्यों जल नीरा ॥३॥
तुम बिन मेरे अवर को नांही,
तूँ ही मेरी जीवनि दादू मांही ॥४॥
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साभार ~ Shreshth Vichar
एक पूर्ण सतगुरु की पहिचान हमारे शाश्त्रों में इस श्लोक में बताई है. अखंड मंडलाकारम व्याप्तं एन चराचरम. तत पदम् दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः यह श्लोक बताता है की ईश्वर जो की अखंड अर्थार्त अविभाजित है और जो समस्त व्रह्मांड में व्याप्त है उसको शिष्य के अंतर्घट में साक्षात दिखाने वाला ही एक पूर्ण सतगुरु होता है. और ऐसा पूर्ण सतगुरु यदि किसी को मिल जाए तो फिर वोह शिष्य गुरु के अन्दर ही सब कुछ ढून्ढ लेता है. 
और जब ऐसा ही एक पूर्ण सतगुरु मुझे मिला तो मैंने यह गीत 'भजन या कविता की रचना की जो की मेरे उन्ही पूर्ण सतगुरु श्री आशुतोष जी महाराज जी के पावन चरणों में समर्पित है. तत्व तुम्ही हो सार तुम्ही हो. जीवन का संगीत सुनाती साँसों की झंकार तुम्ही हो. तत्व तुम्ही हो सार तुम्ही हो. शब्द तुम्ही निशब्द तुम्हीं हो अनहद का आधार तुम्ही हो. 
तत्व तुम्ही हो सार तुम्ही हो. ढून्ढ रहा था मै तुमको अपनी सोंचों के जंगल में. अंतर्मन में मिलने वाले ज्योति पुंज अंगार तुम्ही हो. तत्व तुम्ही हो सार तुम्ही हो. युगों -युगों से तृषित है यह दिल अमृत की रस धार तुम्ही हो. तत्व तुम्ही हो सार तुम्ही हो.
प्रस्तुतकर्ता ~ Mukesh Kumar Saxena

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