#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
दादू दूजा कुछ नहीं, एक सत्य कर जान ।
दादू दूजा क्या करै, जिन एक लिया पहचान ॥
तुम हरि हिरदै हेत सौं, प्रगटहु परमानन्द ।
दादू देखै नैन भर, तब केता होइ आनन्द ॥
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साभार : GyanSarovar ज्ञानसरोवर
**ईश्वर से प्रेम !**
एक संत ने एक रात स्वप्न देखा कि उनके पास एक देवदूत आया है। देवदूत के हाथमें एक सूची है ।
उसने कहा, 'यह उन व्यक्तियों की सूची है, जो प्रभुसे प्रेम करते हैं ।’
संतने कहा, ‘मैं भी प्रभु से प्रेम करता हूं । मेरा नाम तो इसमें अवश्य होगा ।’
देवदूत बोला, ‘नहीं, इसमें आपका नाम नहीं है ।”
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संत ने निराश होकर पूछा, ‘इसमें मेरा नाम क्यों नहीं है ? मैं ईश्वर से ही प्रेम नहीं करता अपितु ईश्वर की बनाई प्रत्येक जड-चेतन वस्तु से भी प्रेम करता हूं । मैं अपना अधिकांश समय धर्म की सेवा में लगाता हूं ।' उसके पश्चात् जो समय बचता है उसमें प्रभु का स्मरण करता हूं’ तभी संत की नींद खुल गई ।
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दिन में वह स्वप्न का स्मरण कर निराश हो रहे थे । एक शिष्य ने उदासीनता का कारण पूछा तो संत ने स्वप्न की बात बताई और कहा, “वत्स, लगता है, मेरी सेवा में कहीं कोई चूक रह गई है ।” दूसरे दिन संत ने पुनः वही स्वप्न देखा । वही देवदूत पुनः उनके सम्मुख खडा था । इस बार भी उसके हाथ में कागज था । संत ने रुक्षभाव से(रूखेपन से) कहा, “अब क्यों आए हो मेरे पास ? मुझे प्रभु से कुछ नहीं चाहिए ।”
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देवदूत ने कहा, ‘आपको प्रभु से कुछ नहीं चाहिए, किन्तु प्रभु का तो आप पर विश्वास है । इस समय मेरे हाथ में दूसरी सूची है ।' संत ने कहा, ‘तुम उनके पास जाओ जिनके नाम इस सूची में हैं । मेरे पास क्यों आए हो ?’
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देवदूत बोला, ‘इस सूची में आपका नाम सबसे ऊपर है । यह सुन कर संत को आश्चर्य हुआ !!! बोले, “क्या यह भी ईश्वर से प्रेम करने वालों की सूची है ।” देवदूत ने कहा, “नहीं, यह वह सूची है जिन्हें प्रभु प्रेम करते हैं ।” ईश्वर से प्रेम करने वाले तो अनेक हैं; परन्तु प्रभु उसको प्रेम करते हैं जो धर्म से, नीति से, मनुष्यों से और आपकी भांति ईश्वर की बनाई प्रत्येक वस्तुसे प्रेम करते हैं । प्रभु उसको प्रेम नहीं करते जो दिन रात कुछ पाने के लिए प्रभु का गुणगान करते हैं।"
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ईश्वर से हमारा प्रेम निरपेक्ष होना चाहिए । ईश्वर की भक्ति “ईश्वर से पाने हेतु” नहीं अपितु “ईश्वर को पाने” हेतु होनी चाहिए, यही इस प्रसंग का सार है !

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