शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

= १३५ =

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द्वितीय भाग : शब्दभाग(उत्तरार्ध)
राग केदार ६( गायन समय संध्या ६ से ९ बजे)
टीका ~ महामण्डलेश्वर ब्रह्मनिष्ठ पंडित श्री स्वामी भूरादास जी
साभार विद्युत संस्करण ~ गुरुवर्य महामंडलेश्वर संत श्री १०८ स्वामी क्षमाराम जी महाराज
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१३५. तर्क चेतावनी । प्रतिपाल ~
जात कत मद को मातो रे ।
तन धन जोबन देख गर्वानो, 
माया रातो रे ॥टेक॥
अपनो हि रूप नैन भर देखै, 
कामिनी को संग भावै रे ।
बारम्बार विषय रत मानैं, 
मरबो चित्त न आवै रे ॥१॥
मैं बड़ आगे और न आवे, 
करत केत अभिमाना रे ।
मेरी मेरी करि करि फूल्यो, 
माया मोह भुलानां रे ॥२॥
मैं मैं करत जन्म सब खोयो, 
काल सिरहाणे आयो रे ।
दादू देख मूढ़ नर प्राणी, 
हरि बिन जन्म गँवायो रे ॥३॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव, तर्क - पूर्वक सावधान करते हैं कि हे भाई ! तूँ मायारूप मद में मतवाला होकर......
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शरीर की जवानी और धन पाकर, स्त्री आदि........... की छाया को क्या निरख रहा है ? हे मूढ़ ! तुझे तो कामनी आदि का संग प्रिय लगता है, सतंसग प्रिय नहीं लगता । बारम्बार विषयों में रत्त हुआ, मरने के दिन को तूँ चित्त से भूल रहा हैं ।
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और तूँ जानता है कि मेरे बराबर बड़ा और कौन है ? हे मूर्ख ! तूँ यह कितना अभिमान कर रहा है ? मैं हूँ, यह मेरी है, ऐसे कर करके परमेश्‍वर को भूल रहा है । माया और माया का कार्य, मोह की फांसियों में बंध रहा है ।
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और ‘मैं हूँ, मैं हूँ” ऐसे करके इस मनुष्य जन्म को तैंने वृथा ही गमा दिया है । और तेरे सिरहाणे अब काल आ पहुँचा है । तत्ववेताओं के देखते - देखते ही, हे मूढ़ ! तूने विषयों में अन्धा होकर, हरि से विमुख रहकर, मनुष्य जन्म को वृथा ही गमा दिया है ।
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Where are you going intoxicated with pride?
Engrossed in maya, are you proud
To see your body, wealth and youth?
You look at your own form intently
and delight in the company of the opposite sex;
Again and again you plunge lustfully into sensuality –
Are you not aware of death?
“I am the greatest; none is equal to me.”
How much pride you display!
You are deluded with the thought:
“This is mine, that is mine.”
Indeed, you are lost in the delusion of maya.
All of life is wasted in the conceit of I-ness.
And death has drawn close to your head.
See the plight of this human being, O Dadu.
He has ruined his life without God.
(English translation from ~
"Dadu~The Compassionate Mystic"
by K. N. Upadhyaya~Radha Soami Satsang Beas)

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