#daduji
卐 सत्यराम सा 卐
साचा समर्थ गुरु मिल्या, तिन तत्त दिया बताइ।
दादू मोटा महाबली, घट घृत मथि कर खाइ ॥३४॥
टीका ~ सौभाग्य से यदि सत्योपदेश देने वाले सतगुरु मिलें, तो वे आत्मानन्द रूपी तत्व का उपदेश करते हैं। जिससे शिष्य उस उपदेश को मथि कहिये-विधिपूर्वक साधनों के द्वारा विचार करके, "खाइ'' कहिये - अनुभव करता है ॥३४॥
इसका फल क्या हुआ ? "दादू मोटा महाबली'' कहिए- ऐसा उत्तम शिष्य अर्थात् राम-नाम में एकाग्र होकर मोटा अर्थात अत्यन्त "महाबली'' कहिये अविद्या कृत कार्यों के उल्लंघन करने में समर्थ होता है। इसलिए सतगुरु उपदेश या शास्त्र-वाक्यों को धारण करना ही सर्वोत्तम है।
.
पूर्व प्रसंग में राम रस को घी की उपमा दी है। जैसे घी से दीपक प्रकाशमान होकर, सर्वत्र प्रकाशता है। अर्थात् जीवन-मुक्ति और विदेह-मुक्ति रूप अमृत फल होता है, उसका स्वरूप वर्णन करते हैं :-
मथि करि दीपक कीजिये, सब घट भया प्रकाश।
दादू दीवा हाथि करि, गया निरंजन पास ॥३५॥
टीका ~ "मथि'' कर विधिपूर्वक आत्म-अनात्म का विचार करके आत्मबोधरूप दीपक जगाना चाहिए, जिससे "सब घट भया प्रकाश''- अर्थात् संपूर्ण शरीर में आत्म-ज्ञान का प्रकाश हुआ। जीवन-मुक्ति रूप दीवा "अहं ब्रह्मास्मि'' वृत्तिरूप हाथ में लेकर अर्थात् तत्स्वरूप होकर निरंजन माया रहित शुद्ध चेतन में विदेह मोक्ष हो गया अर्थात् अभेद हो गया ॥३५॥
(श्री दादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें