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॥ दादूराम ~ श्री दादूदयालवे नम: ~ सत्यराम ॥
"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =
अथ अध्याय ४ ~
६ आचार्य कृष्णदेव जी ~
जोधपुर राजा की ओर से उक्त स्थायी सेवा करके भी शासक महाराज के पास सत्संग के लिये जाते रहते थे और भंडारी आदि से पूछ - कर आवश्यक सेवा करते रहते थे । जोधपुर नरेश आदि अन्य भक्त भी महाराज की सेवा का ध्यान रखते थे । अब नारायणा दादूधाम के समान ही मेडता धाम बन गया था । फाल्गुण शुक्ला में पंचमी से ११ तक मेला भी मेडता में ही होने लगा था । दो तीन वर्ष तक मेला मेडता मे ही होता रहा था । नारायणा दादूधाम में भी होता था । मारवाड प्रदेश के लोग मेडता ही मेला मना लेते थे । अन्य प्रदेश उत्तरार्ध आदि भी मेडता ही जाते थे । नारायणा नहीं पहुंचते थे ।
राजा जयसिंह का पश्चात्ताप ~ इधर जयपुर नरेश राजा सवाई जयसिंह के एक भयंकर रोग हो गया था, वह बहुत चिकित्सा कराने पर भी नहीं मिट रहा था । तब एक दिन उनके एक मंत्री ने उनको कहा - महाराज ! मेरे मन में एक संकल्प उठ रहा है कि आपने नारायणा दादूधाम के आचार्य परम विरक्त भजनानन्दी महात्मा कृष्णदेव के भजन में विध्न खडा कर दिया था । जिससे उन्हें नारायणा छोडकर जोधपुर राज्य की सीमा में जाना पडा । उसी का फल यह रोग हो सकता है, तभी चिकित्सा से ठीक नहीं हो रहा है । वे तो उच्च कोटि के भजनानन्दी महात्मा थे, चले गये और आज कल मेडता में विराज कर भजन कर रहे हैं । वहां भी उनकी नारायणा दादूधाम के समान ही सब व्यवस्था हो गई है । फाल्गुण शुक्ला का मेला भी वहां होने लग गया है और विदेशों से आने वाले दादूजी की परम्परा के संत आज कल आपके राज्य में आते ही बहुत कम है, मेडता ही जाते हैं । मेरा विचार है कि - यह रोग संतों के अनादर का ही फल रुप आपके शरीर में लग रहा है । अत: उनको पीछा बुलाया जाय तो उन की कृपा से यह रोग नष्ट हो सकता है ।
मंत्री की बात सुनकर जयसिंह ने अपने मन में विचार किया कि - बात तो ठीक ही है । मैंने उनको तो अकारण ही क्लेश दिया है । उनका तो कोई दोष था ही नहीं । त्रुटि तो गलता के महन्त की थी किन्तु बिना विचार करके जोश में आकर मैंने गलता के महन्त की बात मानकर उनको कष्ट दिया था । उसी का फल मुझे यह भोगना पड रहा है परन्तु अब क्या किया जाय अब तो मुझे पश्चाताप ही हो रहा है, और कुछ भी उपाय नहीं दीख रहा है । (क्रमशः)
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