#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
आदि शब्द ओंकार है, बोलै सब घट माँहि ।
दादू माया विस्तरी, परम तत्त यहु नांहि ॥
दादू ओंकार तैं ऊपजै, अरस परस संजोग ।
अंकुर बीज द्वै पाप पुण्य, इहि विधि जोग रु भोग ॥
ओंकार तैं ऊपजै, विनशै बहुत विकार ।
भाव भक्ति लै थिर रहै, दादू आतम सार ॥
पहली किया आप तैं, उत्पत्ति ओंकार ।
ओंकार तैं ऊपजै, पंच तत्त्व आकार ॥
पंच तत्त्व तैं घट भया, बहु विधि सब विस्तार ।
दादू घट तैं ऊपजै, मैं तैं वर्ण विकार ॥
एक शब्द सब कुछ किया, ऐसा समर्थ सोइ ।
आगै पीछे तो करै, जे बलहीना होइ ॥
निरंजन निराकार है, ओंकार आकार ।
दादू सब रंग रूप सब, सब विधि सब विस्तार ॥
=================
साभार ~ Ramjibhai Jotaniya ~
ॐ में सारा ब्रह्माण्ड सम्मिलित है, हमारे जीवन, विचार व बुद्धि का यह प्रतीक है और आधार है, इस विश्व का आदि व अन्त ॐ में ही है, हमारी चेतन या सुषुप्तावस्था में जो कुछ हम देखते हैं या अनुभव करते हैं उससे भी परे जहाँ बुद्धि का प्रवेश भी नहीं है, वह भी ॐ ही है, यह समस्त ब्रह्माण्ड ॐ का ही प्रसार है....
ॐ ही शान्ति, आनन्द, ज्ञान, शक्ति तथा परमं अस्तित्व स्वरूप है, ॐ ही सत्य, शिवं तथा सुन्दरं का उद्घोष है, अत: मानव-जीवन का शाश्वत आध्यात्मिक कल्याणकारी लक्ष्य ॐ का ध्यान कर आत्मसाक्षात्कार द्वारा जीवन को ओममय बना कर ॐ में ही विलीन हो जाना है, इस संदर्भ में जो प्रयास हैं वे ही साधना, तपस्या तथा भक्ति के नाम से जाने जाते हैं ॐ में विलीन होना ही मोक्ष है, कल्याण है, मंगल है, आवागमन से मुक्ति है ! ॐ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें