शुक्रवार, 29 मई 2015

= १८७ =

#daduji
॥ दादूराम सत्यराम ॥
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दादू राम मिलन के कारणे, जे तूँ खरा उदास ।
साधु संगति शोध ले, राम उन्हीं के पास ॥
ब्रह्मा शंकर सेष मुनि, नारद ध्रुव शुकदेव ।
सकल साधु दादू सही, जे लागे हरि सेव ॥
साधु कंवल हरि वासना, संत भ्रमर संग आइ ।
दादू परिमल ले चले, मिले राम को जाइ ॥
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साभार ~ Ramjibhai Jotaniya ~
प्रेम का दीप शाश्वत जगमगाता है, हृदय के कोटर में बाहर कितना ही अन्धकार फैला हो निराशा का विषम परिस्थितियों में प्रेम निःशब्द छुपा रहता है, हृदय के "भाव-संसार" में किसी अनकही कविता की उद्विग्न पंक्तियों की भांति, सच्चा प्रेम समेटे रहता है, अपनी सम्पूर्ण मोहकता व सृजनात्मकता भीतर ही खिलने को बेताब किसी फूल की कोमल कली की तरह, प्रेम को जरुरत नहीं होती प्रस्फुटन की प्रतीक्षा के पूर्ण होने की, वह संतुष्ट रहता है, कमल के पुष्पों की भांति ह्रदय में खिलकर भी, सच्चा प्रेमी वही होता है, जो अपने सारे विषाद को भीतर ही भीतर पचाकर नीलकंठ की भाँति इस संसार में सबके लिए एक कतरा मुस्कान बाँटता है !

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