शुक्रवार, 29 मई 2015

‪#‎daduji‬
॥ दादूराम ~ श्री दादूदयालवे नम: ~ सत्यराम ॥
"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =

अथ अध्याय ४ ~ 
६ आचार्य कृष्णदेव जी ~ 
मध्यदिन के पश्‍चात् का साधन क्रम ~ 
मध्यदिन में विश्राम करते समय भी संत लोग अपने मन की वृति को ब्रह्म - भजन में ही लगाते थे । संत लोग दिन में शयन तो करते ही नहीं थे । उक्त प्रकार ब्रह्म - भजन करते - करते दिन के दो बज जाते थे । फिर सत्संग का समय आ जाता था । सत्संग का क्रम प्रात: सत्संग के समान ही होता था किन्तु इस समय दादूवाणी की कथा न होकर किसी उपनिषेद्, गीता आदि ज्ञानमय ग्रंथ का प्रवचन एक घंटा होता था फिर अन्य विद्वान संतों के प्रवचन होते थे । अंत में गायक संतों के द्वारा ज्ञान भक्तिमय संतों के भजन सुनाये जाते थे । फिर चार बजे सत्संग सभा विसर्जन हो जाती थी । सब संत तथा भक्त अपने - २ आसनों पर जाकर अपने - २ अभीष्ट कार्य कर के शौचादि जाने वाले शौच स्नानादि से निवृत्त होकर अपने - २ आसनों पर आ जाते थे । आश्रम वासियों को किसी से व्यर्थ बातें करने का निषैध था । फिर सायंकाल के भोजन की सत्यराम हो जाती थी । सायंकाल सब संत भोजन नहीं करते थे, जिन को करना होता था वे भंडार में जाकर अपनी इच्छानुसार भोजन कर आते थे । जो भोजन नहीं करते थे उनको भंडार से आरती के पश्‍चात् आधा सेर दूध मिल जाता था । वे भंडार में जाकर पी आते थे । सायंकाल आरती के समय सब संत तथा भक्त वाणी मंदिर में पहुँच जाते थे । धूप दीपादि हो जाने के पश्‍चात् आरती में आचार्य कृष्णदेवजी महाराज पधारते थे । तब आगे मंदिर में बैठे हुये सब संत तथा भक्त खडे हो जाते थे । फिर आरती आरंभ हो जाती थी । आरती एक दादूजी की और एक अन्य संत की गाई जाती थी । आरती के पश्‍चात् सुन्दरदासजी के रचित अष्टक बोले जाते थे, तथा अन्य संतों के रचित स्तोत्रों का भी गायन होता था । फिर सब आचार्य जी को साष्टांग दंडवत करके तथा अन्य उच्चकोटि के वृद्ध संतों को सत्यराम प्रणाम करके एक घंटा तक ‘दादूराम’ मंत्र की ध्वनि करते थे । पश्‍चात् अपने - २ आसनों पर जाकर ब्रह्म - भजन करते थे । फिर भजन करते - २ ही शयन का समय हो जाने पर शयन करते थे । इस प्रकार सब संतों की ही प्रतिदिन की दिनरात्रि चर्या तथा साधना चलती थी । दिन रात भजनानन्द में निमग्न रहते थे । 
(क्रमशः)

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