गुरुवार, 28 मई 2015

#‎daduji‬ 
॥ श्री दादूदयालवे नम: ॥
२३२. ललित ताल ~ 
बाबा, नांहीं दूजा कोई ।
एक अनेक नाम तुम्हारे, मोपै और न होई ॥ टेक ॥ 
अलख इलाही एक तूँ, तूँ ही राम रहीम ।
तूँ ही मालिक मोहना, केशव नाम करीम ॥ १ ॥ 
सांई सिरजनहार तूँ, तूँ पावन तूँ पाक ।
तूँ कायम करतार तूँ, तूँ हरि हाजिर आप ॥ २ ॥ 
रमता राजिक एक तूँ, तूँ सारंग सुबहान ।
कादिर करता एक तूँ, तूँ साहिब सुलतान ॥ ३ ॥ 
अविगत अल्लह एक तूँ, गनी गुसांई एक ।
अजब अनुपम आप है, दादू नाम अनेक ॥ ४ ॥ 
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव इसमें समता ज्ञान का स्वरूप बता रहे हैं कि हे परमेश्‍वर बाबा ! आपके सिवाय दूजा माया और माया का कार्य सब मिथ्या है । आप ही एक सत्य हो और आप ही के अनेकों नाम हैं । हमारे से तो अब आपके सिवाय और किसी की सिद्धि होती ही नहीं । आप ही अलख और इलाही स्वरूप हैं । आप ही राम और रहीम स्वरूप हैं । आप ही मालिक और मोहन रूप हैं । आप ही करीम और केशव रूप हैं । आप ही साँई और सिरजनहार स्वरूप हैं । यह सब आपके ही नाम हैं । आप ही पवित्रों में पवित्र और पाक रूप हैं । हे करतार ! आप ही सदा स्थिर रहने वाले कायम रूप हैं । हे हरि ! जो आपके भक्त आपके नाम - स्मरण में सदा हाजिर रहते हैं, उनको आप अपने समता स्वरूप का ज्ञान प्रदान करते हो । आप ही रमता - राम, सबको रिजक देने वाले राजिक स्वरूप हैं और आप ही सुबहान सारंग रूप हैं । आपकी आज्ञा में काल - चक्र घूमता है । आप ही सृष्टि के कर्ता, कादिर रूप हैं और हे साहिब ! आप ही सुलतान रूप हैं । आप ही अल्लह अविगत स्वरूप हैं । आप ही गनी गुसांई रूप हैं । आप ही अजब अनूप स्वरूप हैं । हे नाथ ! ये सब आप के, साधकों का कल्याण करने वाले के, अनेकों नाम हैं ।
“बहूनि सन्ति नामानि रूपाणि च सुतस्य ते । 
गुण - कर्माणि रूपाणि तान्यं वेद नो जनाः ॥(भागवत)
नाम निनामे के धरे, संतों शोध स्वभाय । 
‘रज्जब’ माने रामजी, सुमर्यां करी सहाय ॥ २३२ ॥

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