शनिवार, 30 मई 2015

२५ . सांख्य ज्ञांन को अंग ~ १६



‪#‎daduji‬
|| श्री दादूदयालवे नमः ||
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
.
*= २५ . सांख्य ज्ञांन को अंग =*
*भूमि परै अप, अप हू कै परै पावक है,*
*पावक कै परै पुनि वायु हू बहुत है ।*
*वायु परै व्यौम व्यौम हू के परै इन्द्रिय दस,*
*इन्द्रिनि कै परै अन्तःकरन रहतु है ॥*
*अन्तहकरन परै तीनौं गुन अहंकार,*
*अहंकार परै महत्तत्त कौं लहतु है ।*
*महत्तत्त परै मूल माया, माया परै ब्रह्म,*
*ताहि तैं परातपर सुन्दर कहतु है ॥१६॥*
*तत्त्वों की अपेक्षाकृत उत्तमता* : भूमि से सूक्ष्म जल, जल से सूक्ष्म अग्नि(तेज), अग्नि से सूक्ष्म वायु एवं वायु से सूक्ष्म आकाश है ।
आकाश से पर दश इन्द्रियाँ, इन इन्द्रियों से पर अन्तःकरण है । 
अन्तःकरण से पर तीनों गुण एवं अहंकार तथा अहंकार से परे महत्तत्व है । 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - इस महत् तत्व से परे मूल माया(प्रकृति) है । प्रकृति से परे ब्रह्म है जो परात् पर अर्थात् सबसे ऊपर(उत्तम) है ॥१६॥ 
(क्रमशः)

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