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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज,
पुष्कर, राजस्थान ।*
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*~ त्रयोदश बिंदु ~*
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*बिचूण पधारना -*
भैराणा से अति आग्रह पूर्वक बिचूण का भक्त मोहन बागड़ा अपने ग्राम बिचूण में दादूजी महाराज को शिष्य मंडली के सहित ले गया । वहां ही पुन्याणा ग्राम का तोला बागड़ा भी आ गया था । मोहन ने अति श्रद्धा भक्ति से सब संतों की अच्छी सेवा की ।
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दादूजी महाराज ने मोहन और तोला को उपदेश दिया -
"खालिक जागे जियरा सोवे, क्यों कर मेला होवे ॥टेक॥
सेज एक नहिं मेला, तातैं प्रेम न खेला ॥१॥
सांई संग न पावा, सोवत जन्म गमावा ॥२॥
गाफिल नींद न कीजे, आयु घटे तन छीजे ॥३॥
दादू जीव अयाना, झूठे भरम भुलाना ॥४॥"
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ईश्वर तो निरंतर जागते हुये सब की रक्षा करते हैं और जीव मोह नींद में सो रहे हैं । तब सोने वालों का मिलन जागने वाले से कैसे हो ? अतः अरे जीव ! जाग, इन विषयों में लेना देना कुछ नहीं है, ये तो सब नाशवान् हैं -
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"इन में क्या लीजे क्या दीजे, जन्म अमोलक छीजे ॥टेक॥
सोवत स्वप्ना होई, जागे तैं नहिं कोई ।
मृग-तृष्णा जल जैसा, चेत देख जग ऐसा ॥१॥
बाजी भरम दिखावा, बाजीगर डहकावा ।
दादू संगी तेरा, कोई नहीं किस केरा ॥२॥"
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मोहन बागड़ा दादूजी की बताई हुई साधन पद्धति से साधन करके अच्छे भक्त हो गये थे और तोला बागड़ा ने तो दादूजी को दिये हुये नाम का ऐसी विलक्षण रीति से चिन्तन किया कि प्रतिदिन भगवान् उनके साथ जीमते थे । भगवान् के साथ जीमने की तोला बागड़ा की कथा दादू चरित्रों में प्रसिद्ध है । फिर बिचूण से बगरू के भक्तों के आग्रह से विचरते हुये बगरू पधारे ।
(क्रमशः)
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