रविवार, 31 मई 2015

२५ . सांख्य ज्ञांन को अंग ~ १७



‪#‎daduji‬
|| श्री दादूदयालवे नमः ||
*सवैया ग्रन्थ(सुन्दर विलास)*
साभार ~ @महंत बजरंगदास शास्त्री जी,
पूर्व प्राचार्य - श्री दादू आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(जयपुर) व
राजकीय आचार्य संस्कृत महाविद्यालय(चिराणा, झुंझुनूं, राजस्थान)
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*= २५ . सांख्य ज्ञांन को अंग =*
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*भूमि तौ विलीन गंध गंध हू बिलीन आप,* 
*आप हू बिलीन रस रस तेज खातु है ।* 
*तेज रूप रूप वायु वायु हू स्पर्श लीन,* 
*सौ सपर्श व्यौम शब्द तम हि बिलातु है ॥* 
*इन्द्री दस रज मन देवता बिलीन सत्व,* 
*तीनि गुन अहं महत्तत्त गलि जातु है ।* 
*महत्तत्त प्रकृति प्रकृति हू पुरुष लीन,* 
*सुन्दर पुरुष जाइ ब्रह्म मैं समातु है ॥१७॥* 
*तत्त्वों का लय* : भूमि गन्ध में विलीन हो जाती है, गन्ध जल में विलीन हो जाता है । जल रस में, रस तेज में; 
तेज रुप में, रूप वायु में; वातु स्पर्श में, स्पर्श आकाश में, आकाश शब्द में तथा शब्द तमोगुण में विलीन हो जाता है । 
दशों इन्द्रियाँ रजोगुण में विलीन हो जाती है, मन सत्त्वगुण में विलीन हो जाता है । तीनों गुण एवं अहंकार महत्तत्व में विलीन हो जाता है । 
*श्री सुन्दरदास जी* कहते हैं - महत्तत्व प्रकृति में, प्रकृति पुरुष मर तथा अन्त में यह पुरुष ब्रह्म में लीन हो जाता है ॥१७॥ 
(क्रमशः)

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