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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =
= बारहवां १२ अध्याय =
= १४ आचार्य गुलाबदासजी =
हिसार में चातुर्मास ~
वि. सं. १९४५ में आचार्य गुलाबदासजी महाराज को चातुर्मास का निमंत्रण विजयरामजी हिसार वालों ने दिया । आचार्यजी ने स्वीकार कर लिया । चातुर्मास का समय समीप आने पर आचार्यजी ने गुलाबदासजी महाराज अपने शिष्य संत मंडल के सहित नारायणा दादूधाम से प्रस्थान करके शनै: शनै: हिसार पहुँचे । विजयरामजी भक्त मंडल के सहित बाजे गाजे से संकीर्तन करते हुये आचार्यजी की अगवानी करने आये । मर्यादा पूर्वक प्रणामादि शिष्टाचार के पश्चात् अति सत्कार से संकीर्तन करते हुये नगर के मुख्य बाजार से जनता को आचार्यजी तथा संत मंडल का दर्शन कराते हुये नियत स्थान पर ले जाकर ठहराया ।
नारायणा दादूधाम के आचार्य आज हिसार में पधारे हैं, यह समाचार अतिशीघ्र ही हिसार नगर में फैल गया था । अत: आज के दिन हिसार की धार्मिक जनता आचार्यजी के दर्शन करने आती रही । मेला सा लगा रहा । चातुर्मास आरंभ हो गया । अब चातुर्मास के कार्यक्रम सब विधि विधान से होने लगे । प्रात: दादूवाणी की कथा, मध्यदिन में गीता आदि पर विद्वान् संतों के प्रवचन, पदगायन, नाम संकीर्तन, सायं आरती, अष्टक आदि स्तोत्र व पद गायन, ‘दादूराम’ मंत्र की ध्वनि, जागरण के दिन जागरण होने लगे । उक्त सभी कार्य अपने- अपने समय पर होते थे । हिसार की धार्मिक जनता में हिसार निवासी संतों द्वारा दादूवाणी के संस्कार पडे हुये थे । अत: दादूवाणी की कथा हिसार की धार्मिक जनता अति प्रेम से सुनती थी । श्रोता लोग ठीक समय पर आ जाते थे तथा सुनते सुनते तृप्त नहीं होते थे । दादूवाणी के प्रवचन से उन्हें परमानन्द प्राप्त होता था ।
भक्तों की जैसी रुचि सत्संग में थी, वैसी ही संत सेवा में थी । वे स्थान पर संतों को रसोई देते थे । तथा कोई भक्त अपना घर पवित्र करने के लिये शिष्य संत मंडल के सहित आचायजी को उनकी मर्यादा से अपने घर ले जाकर भोजन कराता था । मर्यादानुसार भेंट देता था और मर्यादा पूर्वक पुन: स्थान में पहुँचा देता था । उक्त प्रकार हिसार का चातुर्मास सत्संग तथा संत सेवा दोनों ही दृष्टियों से सुन्दर हुआ । चातुर्मास समाप्ति पर विजयराम जी ने आचार्य जी को उनकी मर्यादा के अनुसार भेंट दी और शिष्य संत मंडल को यथा योग्य वस्त्रादि देकर सस्नेह विदा किया । हिसार की धार्मिक जनता ने भी अति स्नेह से आचार्य जी को भेंटें दी और भाव भीनी विदायी करी । आचार्य जी हिसार से विदा होकर शनै: शनै भ्रमण करते हुये नारायणा दादूधाम में पधार गये ।
(क्रमशः)
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