सोमवार, 28 सितंबर 2015

= १९५ =

 
‪#‎daduji‬
卐 सत्यराम सा 卐 
अष्ट चक्र पवना फिरै, छहसौ सहस्र इक्कीस ।
जोग अमर जम को गिलै, दादू बिसवा बीस ॥
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साभार ~ www.pravakta.com
राम जीवन का मंत्र है। राम मृत्यु का मंत्र नहीं है। राम गति का नाम है, राम थमने, ठहरने का नाम नहीं है। सतत वितानीं राम सृष्टि की निरंतरता का नाम है। राम एक छोटा सा प्यारा शब्द है। यह महामंत्र - शब्द ठहराव व बिखराव, भ्रम और भटकाव तथा मद व मोह के समापन का नाम है।। राम भारतीय लोक जीवन में सर्वत्र, सर्वदा एवं प्रवाहमान महाऊर्जा का नाम है। वास्तव में राम अनादि ब्रह्म ही हैं।
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कबीरदासजी ने कहा है - आत्मा और राम एक है - आतम राम अवर नहिं दूजा। राम नाम कबीर का बीज मंत्र है। रामनाम को उन्होंने अजपाजप कहा है। हम २4 घंटों में लगभग २१६०० श्वास भीतर लेते हैं और २१६०० उच्छावास बाहर फेंकते हैं। 
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इसका संकेत कबीरदाजी ने इस उक्ति में किया है- सहस्र इक्कीस छह सै धागा, निहचल नाकै पोवै। मनुष्य २१६०० धागे नाक के सूक्ष्म द्वार में पिरोता रहता है। अर्थात प्रत्येक श्वास - प्रश्वास में वह राम का स्मरण करता रहता है। राम शब्द का अर्थ है - रमंति इति रामः जो रोम-रोम में रहता है, जो समूचे ब्रह्मांड में रमण करता है वही राम है ।
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इसी तरह कहा गया है - रमते योगितो यास्मिन स रामः अर्थात् योगीजन जिसमें रमण करते हैं वही राम हैं। इसी तरह ब्रह्मवैवर्त पुराण में कहा गया है - राम शब्दो विश्ववचनों, मश्वापीश्वर वाचकः अर्थात् ‘रा’ शब्द परिपूर्णता का बोधक है और ‘म’ परमेश्वर वाचक है। चाहे निर्गुण ब्रह्म हो या दाशरथि राम हो, विशिष्ट तथ्य यह है कि राम शब्द एक महामंत्र है।

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