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॥ श्री दादूदयालवे नमः ॥
"श्री दादू पंथ परिचय" = रचना = संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान =
= बारहवां १२ अध्याय =
= १४ आचार्य गुलाबदासजी =
प्रभुदास जी के चातुर्मास वि. सं. १९४७ में प्रभुदासजी लोरडी वालों ने आचार्य गुलाबदासजी महाराज को चातुर्मास का निमंत्रण दिया । आचार्यजी ने स्वीकार किया । फिर शिष्य संत मंडल के सहित आचार्य गुलाबदासजी महाराज लोरडी पधारे । प्रभुदासजी ने भक्त मंडल के सहित संकीर्तन करते हुये जाकर आचार्यजी का सामेला किया । भेंट चढाकर सत्यराम दंडवत की और संकीर्तन करते हुये ले जाकर स्थान पर ठहराया । चातुर्मास आरंभ हो गया । चातुर्मास के कार्यक्रम सुचारु रुप से चलने लगे । अच्छा चातुर्मास हुआ । समाप्ति पर प्रभुदासजी ने आचार्यजी को मर्यादानुसार भेंट दी तथा शिष्य संत मंडल को यथायोग्य वस्त्रदि देकर सस्नेह विदा किया । लोरडी से विदा किया । लोरडी से विदा होकर आचार्य गुलाबदासजी महाराज शिष्य संत मंडल के साथ भ्रमण करते हुये नारायणा दादूधाम पधार गये ।
ब्रह्मलीन होना ~
उक्त प्रकार आचार्य गुलाबदासजी महाराज १७ वर्ष २ मास १५ दिन गद्दी पर विराज कर वि. सं. १९४८ में मार्गशीर्ष शुक्ला १३ रविवार को ब्रह्मलीन हो गये । आपने- अपने समय में समाज का अच्छा संचालन किया था । समाज में सुख शांति का विस्तार हुआ था । अन्य समाज भी आप पर श्रद्धा रखते थे ।
गुण गाथा ~
दोहा- प्रिय गुलाब सम सभी को, लगे गुलाबाचार्य ।
निज अधिकार समान ही, किये पंथ के कार्य ॥१ ॥
पूर्वाचार्यों की चले, चाल छोड अभिमान ।
अत: गुलाबदासजी पर, हुआ भले सम्मान ॥२ ॥
किया गुलाबाचार्य पर, कई नृपों ने भाव ।
निज नगरों में ले गये, पूजे कर उत्साव ॥३ ॥
कोमल प्रकृति गुलाब सम, हुये गुलाबाचार्य ।
इससे सब ही मानते, उन्हें अनार्य आर्य ॥४ ॥
स्वाभाविक ही सर्व प्रिय, होत संत प्रख्यात ।
गुरु गुलाब ऐसे हि थे, संत सुनाते बात ॥५ ॥
‘नारायणा’ निर्णय भया, गुलाब थे सु महन्त ।
इससे महिमा गाय हैं, उनकी सुन्दर संत ॥६ ॥
(क्रमशः)
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