सोमवार, 16 नवंबर 2015

= विन्दु (१)३८ =

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*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
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*= विन्दु ३८ दिन २० =*
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*= ब्रह्मचारी धर्म =*
"ज्यूं ज्यूं होवे त्यूं कहैं, घट बध कही न जाय ।
दादू सो शुध आतमा, साधू परसे आय ॥
नारी नैन न देखिये, मुख से नाम न लेय ।
कानों कामिनी जनि सुने, यहु मन जान न देय ॥
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*= गृहस्थ धर्म =*
"सदका सिरजन हार का, केता आवे जाय ।
दादू धन संचै नहीं, बैठा खुलावे खाय ॥
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*= वानप्रस्थ धर्म =*
"सूखा सहजैं कीजिये, नीला भाने नांहिं ।
काहे को दुःख दीजिये, साहिब है सब माहिं ॥
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*= सन्यास धर्म =*
दादू मन मृतक भया, इन्द्री अपने हाथ ।
तो भी कदे न कीजिये, कनक कामिनी साथ ॥
ब्रह्म सरीखा होय कर, माया से खेले ।
दादू दिन दिन देखतां, अपने गुण मेले ॥
पहले तन मन मारिये, इनका मरदै मान ।
दादू काढ़ै जंत्र में, पीछे सहज समान ॥
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*@शिष्य बनाने की इच्छा नहीं करे -*
बिन ही किया होय सब, सन्मुख सिरजन हार ।
दादू करि करि को मरे, शिष साखा शिर भार ॥
धन आदि संग्रह न करें, नारी से स्नेह नहीं करें - ग्रन्थन(धन) बांधे गांठड़ी, नहिं नारी से नेह । मन इन्द्रिय सुस्थिर करे, छाड़ि सकल गुण देह ॥
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*@अखंड भक्ति करें -*
निराकार से मिल रहे, अखंड भक्ति कर लेह ।
दादू क्यों कर पाइये, उन चरणों की खेह ॥
दादू नबरे नाम बिन, झूठा कथे गियान ।
बैठे शिर खाली करै, पंडित वेद पुरान ॥
राम बिना सब फीका लागे, करणी कथा गियान ।
सकल वृथा है कोटिकर, दादू जोग धियान ॥
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*@केवल पढ़ने से ही मुक्त नहीं होता -*
मसि कागज के आसरे, क्यों छूटे संसार ।
राम बिना छूटे नहीं, दादू भरम विकार ॥
पोथी अपना पिंड कर, हरि यश मांहीं लेख ।
पंडित अपना प्राण कर, दादू कथहु आलेख ॥
काया हमारी कतेब बोलिये, लिख राखूं रहमान ।
मन हमारा मुल्लां बोलिये, सुरता है सुबहान ॥
पढ़े न पावे परम गति, पढ़े न लंघे पार ।
पढ़े न पहुँचे प्राणियां, दादू पीड़ पुकार ॥
पढि पढि थाके पंडिता, किनहु न पाया पार ।
कथ कथ थाके मुनि जना, दादू नाम आधार ॥
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*@अन्य सबको छोड़कर एक मूल ब्रह्म को ही आत्मरूप से ग्रहण करे -*
जिन बाँझे काहू कर्म से, दूजे आरंभ जाय ।
दादू एकै मूल गहि, दूजा देय बहाय ॥
ज्ञान भक्ति मन मूल गहि, सहज प्रेम ल्यो लाय ।
दादू सब आरंभ तज, काहू संग जाय ॥
एका एकी राम से, कै साधुन का संग ।
दादू अनत न जाइये, और काल का अंग ॥
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उक्त जाति वर्णाश्रम संबन्धी प्रवचन सुनकर अकबर बादशाह, आमेर नरेश भगवतदास, बीरबल आदि सभी ने प्रसन्नता से उक्त विचारों का समर्थन किया फिर सत्संग का समय समाप्त हो जाने से दादूजी को प्रणाम करके सब अपने-अपने भवनों को चले गये । आमेर नरेश और बीरबल भी बादशाह को राज-भवन में पहुँचाकर अपने अपने भवनों को चले गये ।
इति श्री दादूचरितामृत सीकरी सत्संग दिन २० विन्दु ३८ समाप्त
(क्रमशः)


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