卐 सत्यराम सा 卐
३९४. मध्य मार्ग निष्पक्ष । षट्ताल ~
अलह कहो भावै राम कहो, डाल तजो सब मूल गहो ॥ टेक ॥
अलह राम कहि कर्म दहो, झूठे मारग कहा बहो ॥ १ ॥
साधू संगति तो निबहो, आइ परै सो शीश सहो ॥ २ ॥
काया कमल दिल लाइ रहो, अलख अलह दीदार लहो ॥ ३ ॥
सतगुरु की सुन सीख अहो, दादू पहुँचे पार पहो ॥ ४ ॥
टीका ~ ब्रह्मऋषि सतगुरुदेव निष्पक्ष मार्ग दिखा रहे हैं कि हे जिज्ञासु ! अल्लाह और राम, ये दोनों एक ही ईश्वर के नाम हैं । किसी नाम से भी स्मरण करो । दोनों से एकसा ही फल प्राप्त होता है । पक्षपात रूप शाखाओं का त्याग करके चैतन्य स्वरूप राम की शरण ग्रहण करो । अल्लाह या राम - नाम का निष्काम स्मरण द्वारा ज्ञान अग्नि से, अपने संचित कर्मों को जलाओ और संसार के मिथ्या मार्ग पर क्यों जाते हो ? सच्चे संतों की सत्संगति द्वारा ही तुम्हारा सच्चे मार्ग में निर्वाह होवेगा । और प्रारब्धवश शरीर पर सुख दु:ख आदि आवें, उनको सिर पर सहन करो । शरीर के हृदय रूप कमल में अपनी वृत्ति को नाम - स्मरण में लगाओ, तो अलख रूप अल्लाह का भीतर ही दीदार करोगे । इस सतगुरु के उपदेश को श्रवण करके उसके अनुसार साधन करते हुए चलिये । तभी सांसारिक भावना से पार हो जाओगे तो फिर परमानन्द स्वरूप प्रभु को प्राप्त करोगे ।
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