सोमवार, 16 नवंबर 2015

= ७१ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
.
निराधार घर कीजिये, जहँ नांहि धरणि आकास ।
दादू निश्चल मन रहै, निर्गुण के विश्वास ॥
मन चित मनसा आत्मा, सहज सुरति ता मांहि ।
दादू पंचों पूरि ले, जहँ धरती अंबर नांहि ॥
====================
साभार : Anand Nareliya ~
.
एक जर्मन विचारक हेरिगेल ने अपना संस्मरण लिखा है। वह एक झेन-गुरु के पास वर्षों तक रहा। जापान के एक तीन मंजिल मकान में, तीसरी मंजिल पर उसकी विदाई समारोह का आयोजन किया था। हेरिगेल वापस लौट रहा था। उसके बहुत मित्र, साथी, परिचित, सहयात्री, गुरु के अन्य शिष्य, जिन सबसे वह निकट हो गया था, सभी बुलाये गये थे। गुरु को भी उसने आमंत्रित किया था।
.
संयोग की बात ! जब भोजन चलता था, अचानक भूकंप आ गया। जापान में भूकंप आसान है। लकड़ी का मकान भयानक रूप से कंपने लगा। किसी भी क्षण गिरा…गिरा। लोग भागे। हेरिगेल भी भागा। सीढ़ियों पर भीड़ हो गई। उसे खयाल आया गुरु का। उसने लौट कर देखा, गुरु आंख बंद किए अपनी जगह पर बैठा है।
.
हेरिगेल का एक मन तो हुआ कि भाग जाये और एक मन हुआ कि गुरु को निमंत्रित किया है मैंने, मैं ही उन्हें छोड़कर भाग जाऊं, शोभायुक्त नहीं। फिर जो गुरु का होगा वही मेरा होगा। और जब वे इतने अकंप और निश्चिंत बैठे हैं, तो मुझे इतना भयभीत होने की क्या जरूरत! वह भी रुक गया, गुरु के पास बैठ गया। हाथ पैर कंपते रहे, जब तक कि कंपन समाप्त न हो गया। बड़ा भयंकर उत्पात हो गया था। अनेक मकान गिर गये थे। सड़क पर कोलाहाल था, लोग पागल थे।
.
जैसे ही भूकंप रुक गया, गुरु ने आंख खोली और जहां बात टूट गई थी भूकंप के आने और लोगों के भागने के कारण, वहीं से बात शुरू कर दी, जैसे बीच में कुछ भी न हुआ। हेरिगेल ने कहा, ‘अब तो मुझे याद भी नहीं, कि हम क्या बात करते थे। बीच में बड़ी घटना घट गई। बड़ा फासला पड़ गया। मैं तो भूल ही गया हूं कि पहले आपने क्या कहा था। अब वह सवाल महत्वपूर्ण भी नहीं है। अब तो मैं कुछ और ही पूछना चाहता हूं।
.
यह जो भूकंप हुआ इस संबंध में कुछ कहें।’ तो गुरु ने कहा, ‘वह सदा बाहर ही बाहर है। और जो भीतर न हो उसका कोई भी मूल्य नहीं है। बाहर सब कंप गया। मैं वहां सरक गया भीतर, जहां कोई कंपन कभी नहीं जाता।’
यही तो सारी आत्मज्ञान की कला है। अपने भीतर उस जगह सरक जाना, जहां कोई कंपन कभी नहीं जाता।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें