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*दादू नारायण नैना बसै, मनही मोहन राइ ।*
*हिरदा मांही हरि बसै, आतम एक समाइ ॥*
*दादू तन मन मेरा पीव सौं, एक सेज सुख सोइ ।*
*गहिला लोग न जाणही, पच पच आपा खोइ ॥*
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साभार : Sri Sumeet ~
“बिगरी जनम अनेक की सुधरे अबहीं आजु”...
तुलसीदासजी कहते हैं कि अनेक जन्मों की बिगड़ी हुई बात, आज सुधर जाये और आज भी अभी-अभी इसी क्षण, देरी का काम नहीं... इसके लिए करना क्या है...
“होही राम को नाम जप”...राम का होकर राम का नाम जपो...
साथ में "तुलसी तजि कुसमाज".. कैसे ??... बताता हूँ..
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जैसे एक शिशु होता है... वो अपना केवल अपनी माँ को मानता है. अपनी माँ से वो दूर नहीं रह सकता. माँ ने उसे जो खिलौने दिए, वो तभी तक उसको अच्छे लगते हैं, जब तक उसकी माँ उसके पास है... माँ दूर हुई नहीं कि वो माँ के लिए व्याकुल होकर रोने लगता है... उसने माँ के बारे में पढ़ा नहीं, सीखा नहीं.. बस उसे पता है कि वो माँ का अंश है.. उसकी खुशी माँ के साथ रहने में ही है.. वो बोलता भी केवल माँ माँ ही है.. चाहे उसे भूख लगी हो या कुछ कष्ट हो.. माँ खुद समझती है कि शिशु को क्या चाहिए...
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बस आप भी अपने को कृष्ण का अंश मान लो.. उसके साथ रहने में खुश रहो.. उसका ही नाम जपो.. बाकी आपको क्या चाहिए उसपे जाने दो...
मेरे तो गिरधर गोपाल ‘दूसरो न कोई’... विशेष ये है दूसरो न कोई.. जब तक दूसरों का सहारा लेकर नाम जपोगे कुछ नहीं मिलेगा.. ‘अनन्यचेता: सततं’, ‘अनन्याश्चिन्तयन्तो मां’... केवल भगवान ही मेरे हैं. मैं औरों का नहीं हूँ तथा मेरा और कोई नहीं है - ऐसा अपनापन करके साथ में फिर नाम जपो तो उस नाम का भगवान पर असर होता है.
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और भगवान के अतिरिक्त किसी भी अन्य का होना ही ‘कुसमाज’ है.. इस ‘अन्य’ में वासना और उपासना दोनों शामिल हैं.. वासना तो आपको पता ही है, अपनी साधना का अभिमान भी कुसमाज ही है.. अभिमान तब होता है जब फल पर नज़र होती है, मतलब हमने ये साधन किया है - तो इसका ये उत्तम फल होगा, यही भाव अभिमान लाता है.. इसीलिए श्री भगवान गीताजी में भक्तियोग की व्याख्या करते समय जिस चीज़ को सबसे श्रेष्ठ बता रहे वो है कर्म फल का त्याग.. गोस्वामी जी कहते हैं
‘दूसरो भरोसा नहीं बासना उपासना की,
बासव बिरंची सुर नर मुनि जन की’..
भगवान के अतिरिक्त किसी और का भरोसा रखना ही ‘कुसमाज’ है..
~ डॉ. सुमीत
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