गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

= विन्दु (१)५१ =

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏🇮🇳 *卐 सत्यराम सा 卐* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*#श्रीदादूचरितामृत*, *"श्री दादू चरितामृत(भाग-१)"*
लेखक ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ।*
.
*= अथ विन्दु ५१ दिन ३३ =*
*= संतों का वास्तविक देश तथा तत्त्व वर्णन =*
.
को साधू जन उस देश का, आया इहिं संसार ।
दादू उसको पूछिये, प्रीतम के समचार ॥
कोई विरले संतजन ही उस निर्विकल्प अवस्था रूप देश से इस मायिक संसार में आते हैं अर्थात् लोकों को उपदेश करते हैं, सब नहीं करते । बहुत-से तो उस परमानन्द में निमग्न होकर मौन ही हो जाते हैं, उपदेश करते ही नहीं हैं । अतः जो उपदेश करते हैं उन्हें उस प्रियतम परब्रह्म के स्वरूप सुख संबंधी समाचार पूछना चाहिये ।
.
समाचार सत पीव का, को साधू कहगा आय ।
तहां राम-रस पाइये, जहां साधु तहँ जाय ॥
प्रियतम परब्रह्म के स्वरूप सुख का समाचार कोई विरला संत ही समाधि को उत्थान अवस्था रूप इस मायिक देश में आकर लोक कल्याणार्थ उपदेश करते समय पूछने पर सत्य-सत्य कहेगा । अतः जहां उक्त स्थिति के साधु हों, वहां जाकर उनके उपदेश द्वारा राम-रस(भक्ति ज्ञानादि रूप रस) का श्रवण करना रूप पान अवश्य करना चाहिये ।
.
उक्त उपदेश सुनकर अकबर को महान् आनन्द प्राप्त हुआ । वह अति प्रसन्न होकर बोला - स्वामिन् ! आपको अनेक धन्यवाद है । आपकी कृपा से मैं भी इस संसार में अपने को धन्य ही मान रहा हूं । आप जैसे महान् संतों का सत्संग तो महान् पुण्य के प्रताप से हीप्राप्त होता है । स्वामिन् ! इस समय मेरे मन में एक और भी संशय हो रहा है । उसको भी आप हटा दीजिये ।
.
वह यह है - तत्त्व कितने हैं ? मुसलामानों में तो चार ही तत्त्व मानते हैं किंतु हिन्दुओं में तो नाना मत हैं, वे तो पांच से लेकर २६ तक कहते हैं और कोई तो २६ से भी अधिक बताते हैं । अतः आप कितने तत्त्व मानते हैं, जो आप बतायेंगे उतने ही मैं भी मानूंगा ।
.
अकबर का उक्त प्रश्न सुनकर दादूजी ने कहा - हे हजरत ! मेरे मत से तो एक ही तत्त्व सत्य है और जो अनेक तत्त्व कहते हैं वे तो कार्य तत्त्वों को कहते है, सब का कारणस्वरूप तत्त्व परमात्मा एक ही है। फिर कार्य तत्त्व नाना हो जाते हैं । जैसे वट बीज एक ही होता है फिर अनेक शाखा, पत्र, फल आदि हो जाते हैं । वैसे ही महात्माओं ने सत्य तत्त्व एक ही माना है और वह ईश्वररूप सत्य तत्त्व एक होने पर भी सब में व्याप्त हो रहा है । जैसे वट बीज से भिन्न वट विस्तार नहीं है, वैसे ही सत्य तत्त्व परब्रह्म का विवर्त्त रूप ही सब तत्त्व विस्तार है उससे भिन्न कुछ भी नहीं है ।
.
वही परमात्मारूप तत्त्व सब विश्व का आधार है -
"एक तत्त्व ता ऊपर इतनी, तीन लोक ब्रह्मंडा ।
धरती गगन पवन अरु पाणी, सप्त द्वीप नौ खंडा ॥
चंद सूर चौरासी लख दिन, अरु रैनी रचले सप्त समंदा ।
सवा लाख मेरु गिरि पर्वत, अठार भार तीर्थ व्रत ता ऊपरि मंडा ॥
चौदह लोक रहै सब रचना, दादू दास तासु घर बंदा ॥
.
जैसे वट विस्तार बीजरूप ही होता है, वैसे उक्त तत्त्वादि सब विस्तार निरंजन राम से भिन्न नहीं है, रामस्वरूप ही है । विवर्त्त अधिष्ठान से भिन्न नहीं हो सकता, यह अति प्रसिद्ध है । अतः एक अद्वैत ब्रह्म तत्त्व ही सत्य है, अन्य सत्य नहीं हैं । 
.
इतना कहकर सत्संग का समय समाप्त होने से दादूजी मौन हो गये । फिर अकबर आदि सब ने उठकर दादूजी महाराज के चरणों में प्रणाम किया और दादूजी से आज्ञा माँगकर सब अपने २ भवनों को चले गये ।
इति श्री दादूचरितामृत सीकरी सत्संग दिन ३३ विन्दु ५१ समाप्तः ।
(क्रमशः)


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें