शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

= ९७ =

卐 सत्यराम सा 卐
काचा उछलै ऊफणै, काया हाँडी मांहि ।
दादू पाका मिल रहै, जीव ब्रह्म द्वै नांहि ॥ 
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साभार ~ नरसिँह जायसवाल ~ 
* शरीर और आत्मा *

एक जिज्ञासु ने किसी संत से प्रश्न किया कि,
क्रॉस पर चढ़ते समय ईसा को दुख की अनुभूति क्यों नहीं हुई ?

संत के पास कुछ नारियल पड़े थे। उन्होंने एक कच्चा और एक सूखा नारियल लिया फिर बोले -- 'यदि मैं कच्चे नारियल को खोलूं तो अंदर का गूदा क्या हो जाएगा' ? 

लोगों ने कहा कि अंदर का गूदा भी कट-फट जाएगा। 

फिर उन्होंने एक सुख नारियल लिया और पूछा 'यदि इसे तोडूं तो गूदे का क्या होगा' ? लोगों ने कहा कि वह सुरक्षित रहेगा। 

तब महात्मा ने कहा --- "जब ईसा को क्रॉस पर चढ़ाया गया तो बाहरी खोल(शरीर) अंदर के गूदे(आत्मा) से बिल्कुल अलग हो चूका था"। इसी कारण ईसा को दुख की अनुभूति नहीं हुई। 

सौजन्य -- सन्मार्ग / साभार !




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